बिजनोर -नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जिस आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश सरकार को नाकों चने चबवा दिए थे, कानपुर में उस फौज की आखिरी शमा भी बुझ गई। रानी झांसी रेजीमेंट की लेफ्टीनेंट रहीं मानवती आर्या ने शुक्रवार को 99 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। जीते जी देश के लिए लड़ने वाली मानवती ने मृत्यु के बाद अपना शरीर देश को दान कर दिया। उनसे पहले आजाद हिंद फौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने भी देहदान कर दिया था।
कानपुर में विकास नगर के पत्रकारपुरम में रहने वाली मानवती आर्या के पिता पंडित श्यामता प्रसाद पांडेय म्यांमार (तत्कालीन वर्मा) के मैक्ट्रीला शहर में डाक विभाग में लिपिक थे। वहीं पर 30 अक्टूबर 1920 को मानवती आर्या का जन्म हुआ था। हाईस्कूल तक की शिक्षा उन्होंने वहीं ग्रहण की। इंटरमीडिएट के दौरान दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया। ऐसे में उन्होंने इंटर की शिक्षा यूपी बोर्ड से, बीए, बीटी आगरा विश्वविद्यालय व एमए कानपुर विश्वविद्यालय से किया। रंगून में पढ़ाई के दौरान ही वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस के संपर्क में आईं और आजाद हिंद फौज से जुड़ गईं। मां-बाप की इकलौती संतान होने के बावजूद उन्होंने देश के लिए लडऩे की ठान ली। उन्हें रानी झांसी रेजीमेंट में लेफ्टीनेंट की जिम्मेदारी मिली।
अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान कई बार उन्होंने अपनी वीरता से सबको अचंभित कर दिया था। म्यांमार पर अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद वे विश्व भारती अकादमी में प्राचार्य बनीं। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें परेशान किया तो वे पैतृक जिले फैजाबाद के बीकापुर तहसील स्थित बरडांडा गांव चली आईं। यहां से फारवर्ड ब्लाक की सदस्य बनकर कानपुर आईं और यहीं फारवर्ड ब्लाक के तत्कालीन महामंत्री डॉ. कृष्णचंद्र आर्य से विवाह कर लिया। इसके बाद दंपती विभिन्न माध्यम से देश सेवा में जुटे रहे। जीवन के अंतिम क्षणों में वे अपने छोटे बेटे दिनेश आर्य के साथ कानपुर के पत्रकारपुरम में रह रही थीं। जहां उन्होंने आखिरी सांस ली। दिनेश आर्य ने बताया कि उनके पिता की तर्ज पर मां ने भी देहदान और नेत्रदान किया है।