ज़रूरी नहीं कि किसी मुद्दे पर विरोध दर्ज कराने के लिए कानून को धत्ता बताकर पथराव और आगजनी का ही सहारा लिया जाय। अपना प्रतिरोध दर्ज़ कराने के बहुत सारे खूबसूरत और ज्यादा कारगर तरीके भी हैं। ऐसा ही एक तरीका परसो आई.आई.एम, बेंगलुरू में देखने को मिला। वहां के अध्यापक और छात्र नागरिकता संशोधन कानून और एन.आर.सी के विरोध में एकत्र थे। पुलिस उनके सामने थी। पुलिस ने उन्हें चेतावनी दी कि धारा 144 के अंतर्गत लगी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने पर उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है। अध्यापकों और छात्रों ने सांकेतिक प्रतिरोध में अपने जूते-चप्पल बाहर कर दिए और खुद कैंपस के अंदर खड़े होकर नारेबाजी करते रहे। पुलिस अवाक। अब निषेधाज्ञा का कानून बेजान जूतों पर लागू हो तो कैसे हो।
शाबाश, आई.आई.एम, बेंगलुरू ! आपने बताया है कि पढ़े-लिखे लोगों और ज़ाहिलों के विरोध में क्या फ़र्क होता है।