धन्धेबाज जग्गी वासुदेव उर्फ सद्गुरु के झूठ और मोदी का सपोर्ट सीएए अभियान
सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर जगदीश उर्फ़ जग्गी वासुदेव उर्फ़ सद्गुरु द्वारा सत्ताधारियों के चरण चुम्बन!
✍ अरविन्द
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झूठ कम समय और शब्दों में बोला जा सकता है पर सच्चाई बयां करने के लिए समय और धैर्य की जरूरत होती है। इसीलिए जग्गी वासुदेव के 20 मिनट के वीडियो में बोले गये झूठ का पर्दाफाश करने में लेख लम्बा हो गया हैै। शिकायत ना करें। समय निकालकर पढ़ें और आगे फॉरवार्ड जरूर करें।
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यह कोई अचरज की बात नहीं है कि तमाम तरह के दन्द-फन्द और तिकड़म से अपना साम्राज्य फैलाने में लगा एक बहरूपिया भाजपा की फ़ासीवादी सरकार की नीतियों का झण्डाबदार बना हुआ है। सत्ता को अपने स्याह को सफ़ेद करने के लिए ऐसे ही दुष्प्रचारकों की ज़रूरत होती है और ऐसे पाखण्डियों को भी अपने काले साम्राज्य को कायम रखने के लिए सत्ता के आशीर्वाद की दरकार होती है। भौतिक वस्तुओं से परम सुख लूटकर अध्यात्मि ज्ञान के नाम पर लोगों की जेबें ढीली करने वाले ऐसे स्वयं नामधारी युगदृष्टाओं के लिए यह एकदम भौतिक क्रियाव्यापार है। यह ठीक इसी तरह से है कि एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले और तू मेरी (पीठ) खुजा मैं तेरी (पीठ) खुजाऊँ।
हाल ही में स्वयंभू गुरु जग्गी वासुदेव ने सीएए, एनआरसी पर और इसके विरोध में उठ खड़े हुए आन्दोलनों के ख़िलाफ़ बड़े ही कुटिल और शातिर ढंग से प्रवचन झाड़े हैं। एक कहावत है कि 'केवल दाढ़ी बढ़ा लेने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता' लेकिन हमारे जैसे पिछड़े समाज में दाढ़ी बढ़ा लेने से ही ज्ञान देने का लाइसेन्स मिल जाता है और इस पर बाबागिरी का मुलम्मा चढ़ जाये तो सोने पर सुहागा हो जाता है। बाबा यदि अंग्रेजी भी बोलने लगे तो इस देश के मध्यम वर्ग की एक अंग्रेजों के प्रति हीनता बोध (इन्फिरियोरिटी काम्प्लेक्स) से ग्रसित कूपमण्डूक आबादी एड़ियाँ उठा-उठाकर जैकारे लगाने लगती है। हालाँकि जग्गी वासुदेव पर आदिवासियों की ज़मीनें कब्जा करने, वन क्षेत्र व वन्यजीवन को बर्बाद करने, एनजीओपन्थी करके धन हड़पने, महासमाधि के नाम पर पत्नी की हत्या करने और बाबाडम की ओट में अज्ञान फैलाने जैसे आरोप भी लगते रहे हैं लेकिन हमारे बाबा प्रधान देश में कॉर्पोरेट के इस चारण भाट का कहाँ कुछ बिगड़ना था। अब तो शासन और झूठ दोनों के शिरोमणि प्रधानमन्त्री मोदी ने भी सीएए के समर्थन में सोशल मीडिया अभियान शुरू करते हुए इनके उक्त प्रवचन प्रलाप के विडियो के लिंक को अपने ट्विटर हैण्डल से शेयर कर दिया है। जगदीश वासुदेव उर्फ़ जग्गी वासुदेव उर्फ़ सद्गुरु असल में कुछ और नहीं बल्कि रविशंकर, रामरहिम, रामपाल, आसाराम, रामदेव, नित्याननन्द जैसे बाबाओं की पंगत का ही एक नमूना है। जग्गी वासुदेव ने एक बार कहा था कि जिस तरह से पुराने जमाने में राजाओं के यहाँ राजगुरु होते थे वैसे ही आधुनिक युग में राजगुरुओं की ज़रूरत है जो शासन को सही रास्ते पर रख सकें! खुद को राजगुरु साबित करने के लिए ही जग्गी वासुदेव दो फुट की जीभ निकालकर शासन द्वारा फैलाये गये गन्द को साफ कर रहे हैं। इस पाखण्डी की झूठ और चाटुकारिता से लबालब 20 मिनट तक चली कुविचार वर्षा पर ज़रा सरसरी निगाह हम भी डाल ही लेते हैं।
जग्गी वासुदेव के अनुसार लोग बहकावे में आकर, कठोर दिल होने के कारण और करुणा से रिक्त ह्रदय के कारण सीएए जैसे कानून का विरोध कर रहे हैं। क्योकि बाबा के तर्कों की पूरी बुनियाद ही इस बिन्दु से शुरू होती है इसलिए सबसे पहले तो यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि लोग सीएए का विरोध इसलिए नहीं कर रहे हैं कि इसके तहत पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों (हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी) को नागरिकता मिल जायेगी। बल्कि लोग सीएए का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसमें धर्म को नागरिकता प्रदान करने का पैमाना बनाया गया है और भाजपा ने मुस्लिम विरोधी एजेण्डे के कारण धार्मिक और अन्य किसी भी तरह के उत्पीड़न के शिकार मुस्लिमों को सीएए के तहत नागरिकता दिये जाने के दायरे से बाहर रखा है। लोग सड़कों पर उतरकर इस कानून का इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि संविधान के थोड़े-बहुत भी जनवादी चरित्र को तार-तार करने का प्रयास किया गया है तथा भाजपा इसके साथ ही अपना मुस्लिम विरोधी एजेण्डा सेट करने के चक्कर में है। भारत के धर्म-निरपेक्ष और जनवादी चरित्र (बेशक नाममात्र को ही) को नष्ट होने से बचाने के लिए लोग फ़ासीवादी सत्ता के साथ लड़ रहे हैं। और बेशक अपने आप में सीएए यहाँ के मुस्लिमों की नागरिकता छीनता नहीं है लेकिन यह कानून असुरक्षा की भावना को पैदा करता है और शासन-सत्ता की मंशा को भी ज़रूर स्पष्ट करता है। इतना ही नहीं यह कानून एनआरसी के साथ मिलकर बेहद ख़तरनाक हो जाता है जोकि मुस्लिमों के लिए यातना शिविरों के दरवाजे खोल सकता है। हालाँकि एनआरसी मुस्लिमों ही नहीं बल्कि तमाम जनता और खासकर गरीबों के लिए भी बेहद ख़तरनाक कानून है जिसके कारण बड़ी आबादी यातना शिविरों में भेजी जा सकती है। असल में लोग सीएए, एनआरसी और एनपीआर का इनके गैर-जनवादी और फ़ासीवादी चरित्र के कारण ही विरोध कर रहे हैं।
वीडियो के शुरू में ही जग्गी कहते हैं कि उन्होंने नागरिकता संशोधन एक्ट के बारे में सिर्फ़ अख़बारों से और सामान्य रूप से उपलब्ध साधनों से ही जाना है तथा इसे पूरा नहीं पढ़ा है। इसे न पढ़कर भी इन्होंने 20 मिनट तक इस पर ज्ञान झाड़ दिया है और अचरज की बात है कि इनके अंग्रेजीदां भक्त बिना कान तक हिलाये पूरा प्रवचन पी गये! आगे ये कहते हैं कि आज़ादी के बाद देश का धार्मिक आधार पर विभाजन हुआ लेकिन फिर भी 23 प्रतिशत लोग पश्चिमी पाकिस्तान यानी आज के पाकिस्तान और 30 प्रतिशत पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में रुक गये हालाँकि इनका कहना है कि ये आँकड़ों के विशेषज्ञ नहीं हैं। सवाल उठता है कि जग्गी यदि आँकड़ों के विशेषज्ञ नहीं हैं और इन्होंने इन्हें जाँचा-परखा नहीं है तो संघियों की व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी द्वारा फैलाये गये झूठ के गपोड़ों को इतने अधिकार के साथ क्यों उचार रहे हैं? हालाँकि पाकिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों का दमन हुआ है और होता है। वहाँ हिन्दू, सिख, ईसाई ही नहीं बल्कि खुद मुसलमानों के ही अलग-अलग धड़े (जैसे शिया मुसलमान, अहमदिया मुसलमान, और बांग्लादेश के बिहारी मुसलमान) भी धार्मिक और सामाजिक उत्पीड़न का शिकार हैं। धर्म के आधार पर बने राष्ट्रों से आप उम्मीद ही क्या कर सकते हैं? लेकिन इसके बावजूद भी गोयबल्स की शैली में अपना उल्लू सीधा करने के मकसद से झूठ के गोले छोड़ने और झूठे आँकड़े पेश करने के लिए किसने कहा है? हकीकत यह है कि 1951 की जनगणना के अनुसार पश्चिमी पाकिस्तान और आज के पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी वहाँ की कुल जनसंख्या का 1.5 प्रतिशत से 2.0 प्रतिशत के बीच थी जोकि 1998 की जनगणना के अनुसार भी करीब 1.6 प्रतिशत थी तथा 2017 की जनगणना के अनुसार 3.3 प्रतिशत हो गयी है। खुद हिन्दू काउंसिल ऑफ पाकिस्तान के अनुसार वहाँ हिन्दुओं की आबादी कुल जनसंख्या का 4 प्रतिशत है और इसमें 1981 की जनगणना की तुलना में 93 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश की कुल गैर मुस्लिम आबादी 23 प्रतिशत थी जो आज 8 प्रतिशत रह गयी है। किन्तु यहाँ से भी न केवल हिन्दुओं बल्कि मुस्लिमों की भी आबादी का बहुत बड़ा पलायन बेहतर अवसरों की तलाश में हुआ है हालाँकि धार्मिक आधार पर उत्पीड़न का भी पहलू है। यदि बांग्लादेश से हिन्दू और मुस्लिम दोनों का ही पलायन नहीं हुआ होता तो फिर संघ परिवार बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के नाम से दशकों से राग अलाप कर क्यों वोट की गोट लाल कर रहा है? जग्गी वासुदेव भी अपने एक और आराध्य अमित शाह की तरह ही पाकिस्तान की हिन्दू आबादी के सम्बन्ध में 1941 की जनगणना के आँकड़े ही प्रयोग कर रहे हैं जिनमें विभाजन के कारण हुए पलायन के चलते बहुत बड़ा फेरबदल हो गया था। यहाँ जब संसद के मंच से ही बेहिचक झूठ के पकोड़े तले जा सकते हैं तो जग्गी बाबा को अपने आश्रम में, अपनी (अन्ध)भक्तमण्डली के बीच रहते हुए भला क्या दिक्कत होने वाली थी।
जग्गी बाबा कहते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में कानूनी तौर पर अल्पसंख्यकों और हिन्दुओं के साथ भेदभावों को मान्यता दी गयी है और उनकी जान-माल-इज्जत-आबरू की कोई गारण्टी नहीं है। हालाँकि पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक आधार पर बने राष्ट्र होने के बावजूद भी दोनों के संविधानों में ही अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा करने के नियम-कायदे मौजूद हैं। (अधिक जानकारी के लिए इन लिंकों पर फैजान मुस्तफ़ा को सुना जा सकता है
(1) https://youtu.be/tNG3oBI1ZiE (2) https://youtu.be/DJAoN5CVnN0
हालाँकि हम इनके सभी तर्क-बयानों से सहमत नहीं हैं।) किन्तु यह दीगर बात है कि वे हकीकत में कितने अमल में लाये जाते हैं जैसे भारत में भी संविधान की नज़र में समानता होने के बावजूद गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों को तरह-तरह की जुल्म-ज़्यादतियाँ झेलनी पड़ती हैं। असल में जग्गी बाबा यहाँ पर जुल्म-ज़्यादतियों का सामान्यीकरण करते नज़र आ रहे हैं। इनका कहना है कि हर देश में हर समाज में भेदभाव हो सकते हैं। हाल ही में गाय के नाम पर गरीब मुसलमानों की हत्याओं के बारे में क्या जगदीश उर्फ़ जग्गी अनजान हैं? असल में शोषण पर आधारित शासन सत्ता चाहे वह भारत की हो या पाकिस्तान की या किसी भी देश की अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए तरह-तरह के तिकड़म रचती है और जनता को आपस में ही लड़वाती है। पूँजीवादी सत्ताएँ जनता को कूपमण्डूक रखने में ही अपने हित सुरक्षित पाती हैं। आर्थिक और राजनीतिक संकट की स्थिति में लोगों को लड़ाने के सत्ता के प्रयास और भी बढ़ जाते हैं। क्या भारत में हिन्दू-मुसलमान के नाम पर निरन्तर धधकती हुई हुई दंगों की आग और इस आग में अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वालों के कुत्सित प्रयासों का इतनी आसानी सामान्यीकरण किया जा सकता है? क्या भारत को लिंचिस्तान बनाने में संघ परिवार और सत्तासीन भाजपा की कारगुजारियाँ भुलाने योग्य हैं?
जग्गी वासुदेव आगे फरमाते हैं कि पहले लोग बिल का अनजाने में, बहकावे में आकर विरोध कर रहे थे और अब लोग धार्मिक भेदभाव को नहीं बल्कि पुलिस के अत्याचारों को प्रदर्शनों की वजह बता रहे हैं। बाबा यहाँ पर भी सफ़ेद झूठ बोल रहे हैं। जग्गी झूठ बोलने में अपने उस्तादों के भी उस्ताद प्रतीत हो रहे हैं। इनका कहना है कि जामिया के छात्रों ने खदान के मज़दूरों की तरह कैम्पस के अन्दर से पुलिस पर पत्थर फेंके और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वालों को बहुत बुरी तरह से पीटा है! जबकि हक़ीक़त यह है कि जामिया के अन्दर पुलिस का हमला बिलकुल नाजायज़ था। खुद दिल्ली पुलिस की ही गृहमन्त्रालय को सौंपी गयी शुरुआती जाँच रिपोर्ट में छात्रों को क्लीन चिट देकर हिंसा का जिम्मेदार स्थानीय असामाजिक तत्त्वों को ठहराया गया है। क्या पुस्तकालय में बैठकर पढ़ रहे छात्रों को पीटना, आँसू गैस के गोले छोड़ना और छात्रों के टूटे हाथ व फूटी आँख देखने में जग्गी बाबा की आँखें फूट गयी हैं? क्या कुछ असामाजिक तत्त्वों के नाम पर पूरे कैम्पस को बर्बाद कर देना जायज़ है? जग्गी यहीं नहीं रुकते बल्कि शुक्र मना रहे हैं कि पुलिस वालों ने गोलियाँ नहीं चलायी! तो फ़िर उत्तरप्रदेश व देश के तमाम हिस्सों में 25 से ज़्यादा लोग क्या कंचे खेलते हुए मारे गये हैं? क्या चन्द हुडदंगियों और हिंसक भीड़ की आड़ में पुलिस की हिंसा को जायज़ ठहराया जा सकता है? जबकि असल हक़ीक़त यह है कि देश भर में हुए अधिकतर प्रदर्शन शान्तिपूर्ण ढंग से हुए हैं। क्या जग्गी बाबा को लोगों की लाशें, उनके टूटे आशियाने दिखायी नहीं देते? सामने आ रहे तमाम वीडियो जो पुलिस के द्वारा की जा रही हिंसा को प्रदर्शित करते हैं वे जग्गी बाबा को दिखायी नहीं देते हैं। क्योंकि जनता पर हो रहे ज़ुल्म महसूस तभी किये जा सकते हैं जब जनपक्षधर नज़रिया हो, कम से कम दिल में इन्सानियत ज़िन्दा हो!
जग्गी बाबा के अनुसार लोगों को खासकर मुस्लिम समूहों को कुछ निराश लोगों के द्वारा बहकाया जा रहा है, उन्हें नागरिकता छीन लिए जाने की अफ़वाह फैलाकर गलत सूचना देकर भड़काया जा रहा है। जग्गी बाबा का कहना है कि आज के आधुनिक युग में कोई भी छात्र अपने मोबाइल में ही नागरिकता संशोधन कानून को पढ़ सकता है लेकिन फिर वे बिना एक्ट पढ़े फैलाये गये झूठ पर भरोसा करके इस एक्ट का विरोध कर रहे हैं। हालाँकि ये महाशय खुद एक्ट को बिना पढ़े ही करीब 1500 सेकेण्ड की लन्तरानी हाँक गये! किन्तु असल में सीएए का विरोध करने वाले सभी धर्मों के लोग हैं तथा बड़ी संख्या में आन्दोलनकारी अपने तर्क-विवेक के साथ सरकार और इसके लग्गू-भग्गुओं के षडयन्त्रों को बेनकाब कर रहे हैं।
एनआरसी के सम्बन्ध में भी जग्गी बाबा बिन हाथ-पैर की छोड़ रहे हैं। ये लोगों के रजिस्ट्रेशन की तुलना कुत्तों के रजिस्ट्रेशन से कर रहे हैं। हालाँकि अभी तक केन्द्र सरकार ने एनआरसी पर कोई भी गाइडलाइन जारी नहीं की है किन्तु असम का उदाहरण हमारे सामने है जहाँ सैकड़ों लोग कई सालों से यातना शिविरों जैसे माहौल में जीवन जी रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति के रिश्तेदार और दशकों तक फौज-पुलिस और सरकारी नौकरी करके भी लोग एनआरसी के नाम पर ज़्यादती का शिकार होने से नहीं बच पाये तो फ़िर आम इंसान किस खेत की मूली हैं? असम का अनुभव क्या कम ख़तरनाक है जहाँ 1600 करोड़ रुपये खर्च करके, 52,000 कर्मचारी खपने पर भी लोगों को भीषण यन्त्रणाओं से गुजरना पड़ा और अब भी गुजर रहे हैं? क्या नोटबन्दी के अनुभव से पेट नहीं भरा जब भ्रष्टाचार और काले धन के नाम पर लोगों को उल्लू बना दिया गया और उनपर सरकारी जुल्म का बुलडोजर चढ़ा दिया गया था? गृहमन्त्री स्वयं एनआरसी में सुबूत के तौर पर राशन कार्ड, वोटर कार्ड और आधार कार्ड को नकार चुके हैं लेकिन जग्गी वासुदेव इस पर बड़े ही शातिराना ढंग से झूठ और अफ़वाह फैलाने में लगे हैं। हालाँकि लोगों को बहकाने और गलत सूचना फैलाने का आरोप ये दूसरों पर लगा रहे हैं।
असल बात यह है कि देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से सत्ता पक्ष के दिल की धुकधुकी बढ़ी हुई है। शान्तिपूर्ण ढंग से उठ खड़े हुए जनता के एकजुट विरोध के सामने संघ परिवार खुद को पंगु पा रहा है। प्रधानमन्त्री हो या गृहमन्त्री या इनके तमाम लग्गू-भग्गू दिन पर दिन बयान बदल रहे हैं किन्तु षड्यन्त्र का इनका ऊँट इनकी मनमर्जी की करवट नहीं बैठ पा रहा है। फ़ासीवादी मोदी सरकार शिक्षा-चिकित्सा-रोज़गार से ध्यान भटकाने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाये हुए है और विकराल रूप धारण कर रही मन्दी से जनता का ध्यान भटकाने के लिए नकली मुद्दे उठाने में लगी है। जग्गी वासुदेव हो या सत्ता पक्ष के चरण चुम्बन करने वाले दूसरे शातिर या इनके सरगना अपने अन्धभक्तों को उल्लू गाँठ सकते हैं। देश की जनता को इन झूठे-लुच्चे-लबारों के प्रवचनों की दरकार नहीं हैं।
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courtesy- unitingworkingclass.blogspot.com