शाहीन बाग की औरतें.....
वो बिकाऊ माल
कहें तो क्या?
इसमें उनके मुख से
नया क्या है?
वो हमें गाली दें
इसमें भी
नया क्या है?
उनके लिए,
जिनकी संस्कृति में
महिला को भरी सभा में
नंगा करना
पाप नहीं है,
अग्निपरीक्षा जिसका
संस्कार है
उनके लिए
सब कुछ माल है.
इन सवालों के सामने
खड़ी हो रहीं
शाहीन बाग की औरतें...
बाजुओं को बटोर कर
बुर्के को
छोड़कर
पर्दे को बना परचम
हर तरह से
आजाद वो
आज सब से
कंधे से कंधा मिलाकर
एक बुलंद आवाज़ में
ललकारती
वो शाहीन बाग की औरतें...
मेरे रंग दे बसंती
गाती
राष्ट्र ध्वज पर
अभिमान करती
जन गण मन कहती
वंदे मातरम् पुकारती
दिल की गहराइयों से
भारत माता बनी
वो शाहीन बाग की औरतें...
दूर तलक नजर न सही
पास बिखरे संसार को
समेटने की कोशिश में
कोटि कोटि कंठ के
माल्याहार
इस संविधान को बचाने
निकल पड़ी हैं
वो शाहीन बाग की औरतें...
उनके मुख पर नाम है
गांधी नेहरू भगतसिंह
अम्बेडकर पेरियार ज्योति बा
मार्क्स लेनिन
सब जिन्होने
उन जैसा कभी किया था
अपने से दुनिया बदलने का
वादा
ताकि सनद रहे
बने थे उन्हीं की तरह
शाहीन बाग की औरतें...
पितृसत्ता समाज को
पैरों तले रौदने को
आज हर मजहब, जाति की
दीवारें तोड रही
मठों के चूलें हिला रही हैं
अपने भारत को बचा रहीं हैं
नया भारत गढ़ रहीं
शाहीन बाग की औरतें...
@ डा नवीन Naveen Joshi
By - Amit Kumar