(उत्तराखंड में भी एनआरसी और सीएए के खिलाफ लोगों का प्रतिरोध जारी है। अब तक राजधानी देहरादून में इसके खिलाफ कई प्रदर्शन हो चुके हैं। इस बीच तमाम राजनीतिक दलों के नेता, नागरिक समाज के लोग और बुद्धिजीवियों ने जनता के नाम एक खुला खत जारी किया है।
NPR-NRC-CAA नहीं, हमें हमारा हक़ दो !
उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों, राजनैतिक नेताओं और जन संगठनों की ओर से एक खुला खत
आज पूरे देश भर में लोग डर और बेचैनी के माहौल में जी रहे हैं। एक तरफ विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं पर पुलिस और गुंडे हिंसक हमले कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ सरकार कुछ बुनियादी सवालों के जवाब को दरकिनार कर रही है:
1. क्या राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC)बनने वाला है? भाजपा के चुनावी घोषणापत्र के अनुसार देश में NRC बनेगा। जिसका नाम एनआरसी में नहीं होगा, उसको गैर-नागरिक घोषित किया जायेगा। गृह मंत्री अमित शाह संसद के अंदर कहते हैं NRC बनेगा, प्रधानमंत्री मोदी जी संसद के बाहर कहते हैं कि इस पर कोई चर्चा ही नहीं हुई है। सवाल अभी भी जस का तस है! NRC बनने वाला है या नहीं? यानी, मोदी जी सच बोल रहे हैं या अमित शाह!
2. नागरिकता नियमावली के अनुसार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) पहले बनेगा और उसी के आधार पर NRC बनाया जायेगा। अमित शाह कह रहे हैं कि एनपीआर और एनआरसी में कोई संबंध नहीं है। ऐसे में हम कानून पर विश्वास करें या मंत्रीजी के बयानों पर?
3. जब असम का नागरिकता रजिस्टर बना, 19 लाख लोगों को सरकार ने गैर-नागरिक घोषित कर दिया। यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली के भतीजे के परिवार वाले भी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए। ऐसे में प्रधान मंत्री का यह बयान कि “किसी की नागरिकता नहीं छीनी जाएगी” कहां तक सही है?
इन बुनियादी बातों पर सरकार से कोई जवाब नहीं मिलने वाला है क्योंकि वह सच्चाई को छुपाना चाहती है। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) आम लोग ख़ास तौर पर गरीबों, मज़दूरों, दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की नागरिकता के लिए खतरा बनने वाला है।
NRC, NPR क्या हैं? कानून क्या कहता है?
नागरिकता नियमावली के अनुसार, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पहले बनेगा। उसको बनाने के लिए देश में रहने वाले हर व्यक्ति से अपना जन्म स्थान, स्थायी पता और पूर्वजों के बारे में जानकारी ली जाएगी (नियम 3)। NPR में दर्ज हुए जानकारी के अनुसार ही राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) बनाया जायेगा (नियम 3(4))। इस प्रक्रिया के दौरान किसी भी व्यक्ति की नागरिकता पर कोई भी सवाल उठा सकता है(नियम 4(5)(b))। अगर ऐसे में किसी व्यक्ति की नागरिकता पर कोई सवाल उठेगा या अधिकारी को खुद उस व्यक्ति की नागरिकता पर शक होगा तब उस व्यक्ति को “संदिग्ध नागरिक” घोषित कर दिया जायेगा (नियम 4(4))। उसके बाद उस व्यक्ति को साबित करना पड़ेगा कि वह भारतीय है। नागरिकता कौन से दस्तावेज से साबित हो सकता है यह सरकार ने आज तक घोषित नहीं किया है। लेकिन आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर ID, इत्यादि सबूत के तौर पर मान्य नहीं होंगे। वोटर लिस्ट में अगर पूर्वजों के नाम भी होंगे, तब भी उनसे क्या रिश्ता है और उस रिश्ते को साबित करने वाले दस्तावेज भी दिखाने होंगे। इन्हीं विसंगतियों और व्यवधानों के कारण असम में 19 लाख लोगों के नाम फाइनल नागरिकता रजिस्टर में दर्ज़ नहीं हो सके। कारगिल युद्ध लड़े सैनिक लेफ्टिनेंट कर्नल सनाउल्लाह खान की नागरिकता भी सिद्ध नहीं हो पाई और उसे डिटेंशन सेंटर में जाना पड़ा।
इस पूरी प्रक्रिया से खतरा क्या है?
इस देश में अधिकांश लोगों के पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जिससे वह अपनी नागरिकता साबित कर सकें। ऐसी स्थिति में सरकार किसी की भी नागरिकता पर सवाल उठा सकती है। अगर किसी अधिकारी को घूस लेना हो या किसी राजनेता को किसी नागरिक की आवाज़ को दबाना हो, NRC उनके हाथ में घातक हथियार बन जायेगा – जिससे किसी भी व्यक्ति की नागरिकता पर सवालिया निशान उठ खड़ा होगा। उसके बाद वह व्यक्ति अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए इधर से उधर भागता रहेगा। अगर एक पूर्व राष्ट्रपति का भतीजा भी अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पाया, आम लोगों की हालत क्या होगी ज़रा सोचिये?
क्या इस प्रक्रिया के दौरान गैर-मुस्लिम लोगों की नागरिकता सुरक्षित रहेगी?
गृह मंत्री अमित शाह पिछले कुछ साल से बयान दे रहे हैं कि गैर-मुस्लिम लोगों को इससे डरने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि अगर कोई गैर-मुस्लिम व्यक्ति अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पायेगा, उसको नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के द्वारा नागरिकता दी जाएगी। उदाहरण के लिए आप गृह मंत्री का ABP न्यूज़ इंटरव्यू (2 अक्टूबर 2019) इंटरनेट पर देख सकते हैं। यह अपने आप में संविधान-विरोधी सोच है। जो भी इस मिट्टी के हैं, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या मज़हब के हों, वह भारतीय हैं। इस तरह का धार्मिक भेदभाव करना बेहद अन्यायपूर्ण और जन-विरोधी है। लेकिन इसके साथ ही अमित शाह यह नहीं बता रहे हैं कि अगर किसी को CAA के द्वारा नागरिकता लेनी है, उसको यह साबित करना पड़ेगा कि वह पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान या बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न कि वजह से भारत में आया। इस पर भी सवाल उठाया जा सकता है और अगर अधिकारी को शक होगा तो वह नागरिकता देने से मना कर सकता है।
यह भी सोचिये! अगर करोड़ों लोग गैर नागरिक घोषित किये जायेंगे तो वे जायेंगे कहां? वे किसी भी देश के नागरिक नहीं रहेंगे। इसलिए कोई भी देश उनको लेगा नहीं। उनको भारत में ही रहना पड़ेगा लेकिन उनके कोई अधिकार नहीं होंगे। वे कम से कम दिहाड़ी में, ज्यादा से ज्यादा समय तक काम करने के लिए मजबूर हो जायेंगे। ऐसे करोड़ों लोगों के होने के कारण कोई भी पूंजीपति या कंपनी सबसे न्यूनतम मज़दूरी पर काम देंगे। एक समुदाय को निशाना बना कर सभी गरीबों के हक़ पर हमला किया जा रहा है।
गुमराह करती सरकार
जब से देशभर में इन मुद्दों पर आंदोलन शुरू हुआ है, तब से सरकार अपनी राय बदलती रही है। भाजपा के हिंदी बुकलेट में NRC पर कोई ज़िक्र ही नहीं है, लेकिन उनके बंगाली बुकलेट में लिखा है कि देश भर में NRC होने वाला है। गृह मंत्री कहते हैं की सारे घुसपैठियों को बाहर निकला जायेगा, लेकिन 5 अक्टूबर को प्रधान मंत्री मोदी ने खुद बांग्लादेश के प्रधान मंत्री को आश्वासन दिया था कि NRC भारत का अंदरूनी मामला है और बांग्लादेश पर इसका कोई असर नहीं होगा। सरकार कह रही है कि नागरिकता संशोधन कानून इसलिए लाया गया ताकि शरणार्थियों को शरण मिल पाए, लेकिन यह नहीं बता रही है कि अगर शरण देना ही मकसद था तो अमित शाह ने बार बार क्यों बयान दिया कि ये कानून लोगों को NRC से बचाने के लिए बनाया जा रहा है? अगर ऐसा नहीं है तो इस कानून के द्वारा सिर्फ 2014 तक ही राहत क्यों दी जा रही है और क्यों सिर्फ तीन देशों के गैर-मुस्लिम लोगों को ही? क्या श्री लंका के तमिल या पाकिस्तान के अहमदिया समुदाय के लोग पीड़ित नहीं हैं? इन सारी बातों से पता चलता है कि सरकार लोगों को सिर्फ गुमराह करना चाहती है।
इन भयंकर जन-विरोधी कदमों के साथ यह सरकार चुप-चाप और गरीब-विरोधी नीतियां ला रही है। श्रम कानूनों को कमज़ोर किया जा रहा है, रोज़गार घट रहा है, बड़े कॉर्पोरेट को 1.45 लाख करोड़ रुपये कर में छूट दिया गया है। भारत के इतिहास में पहली बार भाजपा सरकार वो कानून लायी है जिससे बड़ी भारतीय और विदेशी कम्पनियां राजनैतिक दल को गोपनीय तरीके से इलेक्टोरल बांड द्वारा पैसे दे सकती हैं। जनता को पता भी नहीं चलेगा।
इस पूरे प्रयास के पीछे असली मकसद एक ही है – सत्ताधारी पार्टी के कदमों के खिलाफ आम लोग कभी एकजुट ना हों! यह लोकतंत्र और इस देश के गरीबों पर घातक हमला है। इसलिए हमारा कहना:
शरणार्थियों को शरण देना हमारा कर्तव्य है, लेकिन उसमें जाति,धर्म,लिंग,भाषा,सम्प्रदाय आदि के आधार पर भेदभाव ना हो!
NPR-NRC नहीं, हमें रोज़गार और विकास चाहिए !
नागरिकता पर सवाल मत करो, नागरिकों को जवाब दो!
राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि
- समर भंडारी, राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
- बची राम कंसवाल, वरिष्ठ नेता, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
- किशोर उपाध्याय, पूर्व राज्य अध्यक्ष, कांग्रेस
- Dr डी एस सचान, पूर्व राज्य अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी
- इंद्रेश मैखुरी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले)
बुद्धिजीवी
- Dr शेखर पाठक, चर्चित इतिहासकार
- गीता गैरोला, कवियत्री
- राजेश सकलानी, साहित्यकार
जनसंगठन
- कमला पंत, उत्तराखंड महिला मंच और स्वराज अभियान
- त्रेपन सिंह चौहान और शंकर गोपाल, चेतना आंदोलन
- कविता कृष्णपल्लवी, अन्वेषा
- सतीश धौलखंडी, जन संवाद समिति उत्तराखंड
- अपूर्व, नौजवान भारत सभा
- नईम कुरैशी, मुस्लिम सेवा संगठन
- कैलाश, परिवर्तनकामी छात्र संगठन
- courtsy-जनचौक