कोई रहता है आसमान में क्या !

लोगों ने मंदिर जाकर देख लिए। मस्जिदों में हाज़िरी दी। चर्च में प्रार्थनाएं कीं। भजन गाए। नमाज़ें पढ़ीं। हनुमान चालीसा और गायत्री मंत्र के पाठ किए। एक छोटे, अदृश्य वायरस से बचाने न ईश्वर आया, न अल्लाह, न गॉड। वे बेचारे खुद ही तालों के भीतर बंद हैं। इसका मतलब यह नहीं कि ईश्वर, अल्लाह और गॉड नहीं है। इसका मतलब सिर्फ़ यह है कि वे दुनिया के कामों में हस्तक्षेप नहीं करते। उन्होंने अपने असीम ब्रह्मांड के बीच यह छोटी, खूबसूरत दुनिया बनाई और इसके संचालन के लिए इंसानों को बुद्धि, विवेक, प्रेम, करुणा और संवेदनाएं देकर पृथ्वी पर उतार दिया। यह हम पर है कि हम दुनिया को बचा कर रखें या किश्तों में इसे बर्बाद कर डालें। हमारे मरने के बाद हमारा फैसला इस आधार पर नहीं होगा कि हमने ईश्वर, ख़ुदा या गॉड की कितनी स्तुतियां गाईं हैं। वह इस आधार पर होगा कि हमने उसकी दी हुई दुनिया को कितना बचाया। कितना खूबसूरत बनाया। उसकी दूसरी संतानों - मनुष्यों, जीव-जंतुओं, पक्षियों से हमारे रिश्ते कितने सौहार्दपूर्ण रहे। जीवनदायिनी पृथ्वी, उसके पेड़-पौधों, उसकी नदियों, हवा और आकाश के साथ हमने कैसा सलूक किया। 


कहना न होगा कि हम उसकी कसौटी पर खरे नहीं उतर सके। हमने धर्मों, जातियों, विचारों की आड़ लेकर अपने सहयात्री मनुष्यों के साथ और अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए क़ुदरत की तमाम नेमतों के साथ इतने व्यभिचार किए हैं कि हमारी यह दुनिया विनाश की ओर भाग रही है। इसे बचाने आसमान से कोई नहीं आने वाला। इस पृथ्वी पर जीवित बचे रहने के लिए जो करना है हमें और आपको ही करना है।


ध्रुव गुप्त
पेंटिंग Kunwar Ravindra