रैपिड एंटी बॉडी टेस्ट की खरीदी में बहुत बड़ा घपला पकड़ा गया है

कोरोना पर हमारी गम्भीरता का हिसाब किताब परखने वाले इस पोस्ट को आपलोग जरूर पढ़ें जिसे पत्रकार Girish Malviya ने लिखा है....


रैपिड एंटी बॉडी टेस्ट की खरीदी में बहुत बड़ा घपला पकड़ा गया है और यह घपला कांग्रेस या अन्य किसी विपक्षी दल ने नही पकड़ा है बल्कि तीन कंपनियों के आपसी विवाद को कोर्ट में ले जाने, ओर वहाँ सुनवाई होने के दौरान पकड़ा गया है


हम शुरू से ही कहते आए है कि यह न खाऊँगा ओर न खाने दूँगा कहने वाली की सरकार नही है बल्कि तू भी खा ओर मुझे भी खिला वालो की सरकार है आज यह बात साबित हो गयी है........


अब पूरा मामला आसान शब्दों में समझिए..... दरअसल ICMR जो कोविड 19 से लड़ रही सबसे प्रमुख सरकारी नोडल एजेंसी है उसने कोरोना की रैपिड टेस्ट किट खरीदने के लिए रेयर मेटाबॉलिक्स से 30 करोड़ का समझौता किया.


यानी पहले ही ICMR ने अपने आपको बाँध लिया कि जो भी टेस्ट किट आएगी रेयर मेटाबॉलिक्स के जरिए ही आएगी !........


अब रेयर मेटाबॉलिक्स ने एक ओर कम्पनी को अपने साथ मे मिलाया जिसका नाम है आर्क फार्मास्यूटिकल्स .......इन दोनों कंपनियों ने मिलकर कोविड 19 टेस्ट किट को भारत में लाने के लिए एक तीसरी कम्पनी मैट्रिक्सलेब को ठेका दिया मैट्रिक्स लैब ने कुल 7 लाख 24 हजार कोविड-19 टेस्ट किट चीन से मंगा ली 


दोनों के बीच समझौता यह हुआ था कि रेयर मेटाबॉलिक मैट्रिक्सलेब को शुरुआती 5 लाख किट के पैसे का भुगतान करेगी. 5 लाख किट की कुल कीमत बनी 12 करोड़ 25 लाख.


रेयर मेटाबॉलिक के मुताबिक उन्होंने किट की कुल कीमत के बराबर यानी 12 करोड़ 25 लाख की कीमत मैट्रिक्स लैब को अदा भी कर दी है


मैट्रिक्स लैब का कहना है कि उसके मुताबिक रेयर मेटाबॉलिक 5 लाख किट की पूरी कीमत जो 21 करोड़ होती है वह पहले उपलब्ध कराए


रेयर मेटाबॉलिक कहना था करार के मुताबिक किट की कीमत का पैसा पहले देना था और बाकी जो मुनाफे का पैसा था वह जब आईसीएमआर जिसको कि रेयर मेटाबॉलिक्स को सप्लाई करनी थी उससे पैसा मिलने के बाद में दिया जाना था. लेकिन मैट्रिक्स लैब का कहना है कि उनको पूरा 21 करोड़ रुपए शुरुआत में ही मिलना था जो अब तक रेयर मेटाबॉलिक्स नहीं दे रही है.


यहाँ से इन दोनों पक्षों मे विवाद हो गया और मामला दिल्ली हाईकोर्ट के सामने आ गया सुनवाई में सारे तथ्य सामने आ गए और पता चला कि मैट्रिक्स लैब ने 3 डॉलर की कीमत वाली रैपिड टेस्ट किट मंगाई है जिसकी लगभग 225 रुपये होती है और इस हिसाब से उसे  75×3× 5 लाख= 11 करोड़ 25 लाख, और इसमें अगर भारत तक लाने का खर्चा भी जोड़ दिया जाए जो कि 5 लाख किट का करीब 1 करोड़ रुपये बनते हैं तो भी कुल कीमत बनती है 12 करोड़ 25 लाख. जो रेयर मेटाबॉलिक्स ने मैट्रिक्स लैब को दे दिए है लेकिन उसे अब 21 करोड़ रुपये ही चाहिए 


दिल्ली हाईकोर्ट के सामने अब यह तथ्य भी आ गया कि भाड़ा मिलाकर जो कि लगभग 245 रुपये की पड़ रही है उसे रेयर मेटाबॉलिक्स 600 रु की ICMR को बेच रहा है


चूंकि आईसीएमआर ने रैपिड टेस्ट किट की जांच पर सवाल उठने के बाद फिलहाल के लिए रैपिड टेस्ट पर रोक लगा दी इस वजह से अभी आईसीएमआर से कंपनी को जो पैसा मिलना था वह नहीं मिला. यही कारण है कि अभी तक मैट्रिक्सलेब को उसके मुनाफे का करीबन 8.75 करोड़ रुपए नहीं दिए जा सके हैं. इसलिए यह सारा झगड़ा शुरू हुआ


इस घटनाक्रम से इस बात की पोल खुल गयी कि आईसीएमआर  रैपिड टेस्ट किट की मूल कीमत से करीबन ढ़ाई गुना की कीमत में ये किट भारतीय कंपनियों से ही खरीद रहा है अब यह कितना बड़ा घोटाला है आप स्वंय समझिए 


कुछ लोग यह भी तर्क दे सकते हैं कि ऐसा तो व्यापारी करता ही है लेकिन यहाँ मौका व्यापार वाला नही था किसी की जान बचाने वाला था.... कुछ दिनों पहले ऐसे ही जब थर्मल स्कैनर की बड़े पैमाने पर काला बाजारी होने लगी और सरकार को भी व्यापारी यह स्कैनर महंगे में सप्लाई करने लगे तब गुरुग्राम के जिला ड्रग कंट्रोलर और पुलिस ने छापेमारी कर 11 अप्रैल को 5800 थर्मल स्कैनर पकड़े ,कंपनी संचालक को मजबूरन आयात के दस्तावेज दिखाने पड़े तो जिला उपायुक्त के आदेश पर इन्हें प्रिंट रेट पर सरकार ने ही अपने लिए खरीद लिया गया। अब सरकार स्वास्थ्य विभाग के जरिए जिलों में इनका वितरण कर रही है,....... यह खबर भास्कर में भी छपी है लिंक देख लीजिए...…..


यानी वहाँ ड्रग कंट्रोलर काम कर सकता है लेकिन यहाँ नही कर सकता क्योंकि उसके हाथ सरकार ने ही उसके बाँध रखे होंगे?........ तीन कंपनियों में डिस्प्यूट नही होता तो यह सब हमे पता भी नही चल पाता.!.... अब तो मानेंगे कि यह घोटालेबाज सरकार है?