12 अप्रॅल, 1954 को जन्मे सफ़दर हाशमी जन नाट्य मंच (जनम) के संस्थापक सदस्य थे।सीटू जैसे मज़दूर संगठनों के साथ 'जनम' का अभिन्न जुड़ाव रहा। इसके अलावा जनवादी छात्रों, महिलाओं, युवाओं, किसानों इत्यादी के आंदोलनों में भी इसने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। 1978 तक 'जनम' भारत में नुक्कड़ नाटक के एक महत्वपूर्ण संगठन के रूप में उभरकर आया। एक नए नाटक 'मशीन' को दो लाख मज़दूरों की विशाल सभा के सामने आयोजित किया गया। इसके बाद और भी बहुत से नाटक सामने आए, जिनमें निम्न वर्गीय किसानों की बेचैनी का दर्शाता हुआ नाटक 'गांव से शहर तक', सांप्रदायिक फासीवाद को दर्शाते (हत्यारे और अपहरण भाईचारे का), बेरोजगारी पर बना नाटक 'तीन करोड़', घरेलू हिंसा पर बना नाटक 'औरत' और मंहगाई पर बना नाटक 'डीटीसी की धांधली' इत्यादि प्रमुख रहे। सफ़दर हाशमी ने बहुत से वृत्तचित्रों और दूरदर्शन के लिए एक धारावाहिक 'खिलती कलियों का निर्माण भी किया'। इन्होंने बच्चों के लिए किताबें लिखीं और भारतीय थिएटर की आलोचना में भी अपना योगदान दिया। सफ़दर हाशमी ने 'जनम' के निर्देशक की भूमिका बखूबी निभाई, उनकी मृत्यु तक जनम 24 नुक्कड़ नाटकों को 4000 बार प्रदर्शित कर चुका था। इन नाटकों का प्रदर्शन मुख्यत: मज़दूर बस्तियों, फैक्टरियों और वर्कशॉपों में किया गया था।
1 जनवरी, 1989 को जब दिल्ली से सटे साहिबाबाद के झंडापुर गांव में ग़ाज़ियाबाद नगरपालिका चुनाव के दौरान नुक्कड़ नाटक 'हल्ला बोल' का प्रदर्शन किया जा रहा था तभी 'जनम' के समूह पर एक राजनैतिक पार्टी से जुड़े कुछ लोगों ने हमला कर दिया। इस हमले में सफ़दर हाशमी बुरी तरह से जख्मी हुए। उसी रात को सिर में लगी भयानक चोटों की वजह से सफ़दर हाशमी की मृत्यु हो गई।
सफ़दर हाशमी जिंदाबाद
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Gopal rathi