समाजवादी जन परिषद ने  राष्ट्रीय आपदा में राष्ट्रीय सरकार तुरंत बनाने की मांग की

सन 2020 मे भारत अन्य देशों की तरह एक विनाशकारी खतरे में COVID-19 विषाणु ( VIRUS) की वैश्विक महामारी के कारण आ गया है। बीसियों देशों के COVID-19 महामारी के आंकड़ों, विश्लेषणों और ज्ञात सुरक्षा उपायों से निष्कर्ष निकला है कि भारत में करोड़ों लोग संक्रमित होंगे और लाखों लोगों की मौत होगी। साथ ही देश की अर्थव्यवस्था, सामाजिक सदभाव, राजनीतिक स्थिरता, कानून- व्यवस्था और खाद्य, सीमा तथा स्वास्थ्य सुरक्षा करीब करीब ढेर हो जायेगी। देश का विशिष्ट वर्ग (Elite), प्रशासक, राज्यतंत्र औऱ वैज्ञानिक वर्ग अब तक इन खतरों को नहीं समझ रहे हैं, और वस्तुस्थिति को जनता से छिपा रहे हैं।  


संसदीय और राष्ट्रपति प्रणाली की कई लोकतान्त्रिक सरकारें चरम हालातों लम्बा युद्ध, राष्ट्रव्यापी महामारी (Nationwide Epidemic), वैश्विक आर्थिक युद्ध (Global Economic War), जलवायु महाविपत्ति (Climatic Catastrophe) जैसी मुसीबतों में अकुशल, दुविधा ग्रस्त, और निर्भीक निर्णय मे अक्षम हो जाती  हैं।  ऐसा इसलिए होता है कि  इन सरकारों के पास सम्पूर्ण जनता का समर्थन और उसके प्रतिनिधियों की सहभागिता नहीं होती है।  


ऐसे हालातों में “राष्ट्रीय सरकार (National Unity Government)” बनाने का विश्व के विभिन्न देशों में कई उदाहरण रहे हैं। इन सरकारोँ ने अपने देश और समाज को भीषण संकट औऱ खतरों से उबारने में सफलता पाई। इन राष्ट्रीय सरकारोँ में  संसद की बहुमत वाली पार्टी विपक्षी पार्टियों को भी सरकार में शामिल करती है। सभी पार्टियों के लोग अपने अन्तरविरोधों को कुछ वर्षों के लिये छोड देते हैं। सभी दल मंत्रिमंडल में शामिल होते हैं और तात्कालिक भीषण हालातों से देश को उबारने की कोशिश में लग जाते हैं। 
हम नीचे ऐसी “राष्ट्रीय एकता सरकारों (National Unity Government)” के कुछ उदाहरण देखेंगे।


1. 1861 में शुरू हुए अमेरिका के गृह युद्ध के समय संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय एकता सरकार बनी जिसमें बहुमत वाली रिपब्लिकन पार्टी के अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बने और विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के ऐंडरू जॉनसन उपराष्ट्रपति बने। दोनों पार्टियों की सम्मिलित सरकार ने  गृहयुद्ध में गोरे नस्लवादी राष्ट्रतोड़क विद्रोहियों को हराकर नस्लवाद को हराया और अमेरिकी राष्ट्र को टूटने से बचाया।


2. 1930 की भीषण आर्थिक मंदी (The Great Depression) के समय 1931-35 में बिट्रेन में रैमसे मैकडोनाल्ड के प्रधानमंत्री काल में बहुमत वाली लेबर पार्टी ने विपक्षी लिबरल पार्टी के साथ राष्ट्रीय सरकार बनाई। 
इसी “राष्ट्रीय एकता” के उम्मीदवारों ने 1935 का चुनाव मिलकर लड़ा और आंशिक राष्ट्रीय एकता सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के अंत 1945 तक ब्रिटेन पर शासन किया।


3. दक्षिण अफ्रीका में 1994 में हुए चुनाव के बाद उन सभी दलों के सांसदो को सरकार में शामिल किया गया जिन्हें 10% से ज्यादा वोट आये थे। यह सरकार 1999 तक चली।


4. नेपाल में 2015 के भीषण भूकंप के बाद सभी बड़ी पार्टियों ने मिलकर सरकार और संसद चलाई। इसी दौरान बरसों से मतभेदों मे फँसे हुए नेपाल के नये संविधान को भी बनाया और अंगीकृत किया गया।


5. इटली में 1946 से 2014 के बीच 7 (सात) बार विभिन्न पार्टियों ने मिलकर राष्ट्रीय एकता सरकार चलाई।


6. इज़रायल में कई बार ऐसी राष्ट्रीय एकता सरकार बनी है। सबसे ताज़ा प्रयोग अभी 27 मार्च 2020 का है।


7. ऐसी सरकारे अफगानिस्तान, कनाडा, क्रोएशिया, एस्टोनिया, ग्रीस, हंगरी, केन्या, लेबनान, फिलिस्तीन, श्रीलंका, सूडान, जिम्बाब्वे वगैरह में भी बनी है।


आज भारत में इतिहास का तकाजा है कि केंद्र में इस प्रकार की “राष्ट्रीय एकता” सरकार तुरंत बने।


अभी की कोरोना महामारी के अभूतपूर्व संकट के समय बहुमत वाले केवल एक गठबंधन की सरकार अशक्त रहेगी और कठोर सही निर्णय लेकर उसका कार्यान्वयन नहीं कर पाएगी। उस दक्षता, निर्भीक निर्णयों और कार्यान्वयन के अभाव मे देश और जनता को बीमारी, भूख, मौतें, बेरोजगारी और आर्थिक संकटों की भयानक कठिनाइयों और पीड़ा से गुजरना होगा।  


इसलिए अविलंब ऐसी एक “राष्ट्रीय एकता सरकार” बनाने लिए मैं एक फार्मूला प्रस्तावित कर रहा हूँ । मंत्रिमंडल में 100 (सौ) सदस्यों की जगह मान कर गणना करें। लोक सभा चुनाव (2019) में जिस किसी पार्टी को 1 (एक) प्रतिशत से ज्यादा मत मिले थे; उस हरेक पार्टी के प्राप्त वोट प्रतिशत के अनुपात में मंत्री रखे जाँय। 2019 के चुनाव नतीजे बताते हैं कि 13 (तेरह) दलों को एक प्रतिशत से ज्यादा मत आये थे। इन सभी दलों के सदस्यों को लेकर मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया जाय। एक सरसरी गणना बताती है कि केवल 80 सदस्यों का ही मंत्रिमंडल बन सकेगा। क्योंकि छोटे दलों (1% से कम वोट वाले) और स्वतंत्र उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त मतों के आधार पर क़ोई प्रतिनिधि मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होगा।


भारत की 130 करोड़ जनता को मौत, बीमारी और आर्थिक बरबादी से बचाने के लिए और एक समावेशी सक्षम राजनीतिक नेतृत्व तैयार करने के लिए यह संभव प्रकिया है। संसद मे बहुमत प्राप्त दल इस चुनौती को तुरंत स्वीकार करें और भारत तथा विश्व इतिहास मे एक ऊंची जगह पाएं।   


अतुल कुमार
सचिव