शहीद सफदर हाशमी की जयंती के अवसर पर उन्हें लाल सलाम.......
सफदर हाशमी एक कम्युनिस्ट नाटककार, कलाकार, निर्देशक, गीतकार और कलाविद थे। उन्हें नुक्कड़ नाटक के साथ उनके जुड़ाव के लिए जाना जाता है। भारत के राजनैतिक थिएटर में आज भी वे एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सफदर जन नाट्य मंच और दिल्ली में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एस०एफ०आई०) के संस्थापक-सदस्य थे। जन नाट्य मंच की नींव 1973 में रखी गई थी, जनम ने इप्टा से अलग हटकर आकार लिया था।
12 अप्रैल 1954 को सफदर का जन्म दिल्ली में हनीफ और कौमर आज़ाद हाशमी के घर हुआ था। उनका शुरुआती जीवन अलीगढ़ और दिल्ली में गुज़रा, जहां एक प्रगतिशील मार्क्सवादी परिवार में उनका लालन-पालन हुआ, उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली में पूरी की। दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से अंग्रेज़ी में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में एम०ए० किया। यही वह समय था जब वे स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की सांस्कृतिक यूनिट से जुड़ गए और इसी बीच इप्टा से भी उनका जुड़ाव रहा।
हाशमी जन नाट्य मंच (जनम) के संस्थापक सदस्य थे। यह संगठन 1973 में इप्टा से अलग होकर बना, सीटू जैसे मजदूर संगठनो के साथ जनम का अभिन्न जुड़ाव रहा। इसके अलावा जनवादी छात्रों, महिलाओं, युवाओं, किसानों इत्यादि के आंदोलनो में भी इसने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। 1975 में आपातकाल के लागू होने तक सफदर जनम के साथ नुक्कड़ नाटक करते रहे और उसके बाद आपातकाल के दौरान वे गढ़वाल, कश्मीर और दिल्ली के विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी साहित्य के व्याख्याता के पद पर रहे। आपातकाल के बाद सफदर वापिस राजनैतिक तौर पर सक्रिय हो गए और 1978 तक 'जनम' भारत में नुक्कड़ नाटक के एक महत्वपूर्ण संगठन के रूप में उभरकर आया। एक नए नाटक 'मशीन' को दो लाख मजदूरों की विशाल सभा के सामने आयोजित किया गया। इसके बाद और भी बहुत-से नाटक सामने आए, जिनमें निम्नवर्गीय किसानों की बेचैनी को दर्शाता हुआ नाटक 'गांव से शहर तक', सांप्रदायिक फासीवाद को दर्शाते ('हत्यारे' और 'अपहरण भाईचारे का'), बेरोजगारी पर बना नाटक 'तीन करोड़', घरेलू हिंसा पर बना नाटक 'औरत' और मंहगाई पर बना नाटक 'डीटीसी की धांधली' इत्यादि प्रमुख रहे। सफदर ने बहुत से वृत्तचित्रों और दूरदर्शन के लिए एक धारावाहिक 'खिलती कलियाँ' का निर्माण भी किया। उन्होंने बच्चों के लिए किताबें लिखीं और भारतीय थिएटर की आलोचना में भी अपना योगदान दिया। उन्होंने कहा था-
“ मुद्दा यह नहीं है कि नाटक कहाँ आयोजित किया जाए (नुक्कड नाटक, कला को जनता तक पंहुचाने का श्रेष्ठ माध्यम है), बल्कि मुख्य मुद्दा तो तो उस अवश्यंभावी और न सुलझने वाले विरोधाभास का है, जो कला के प्रति ‘व्यक्तिवादी बुर्जुवा दृष्टिकोण’ और ‘सामूहिक जनवादी दृष्टिकोण’ के बीच होता है।"
सफदर ने 'जनम' के निर्देशक की भूमिका बखूबी निभाई, उनकी मृत्यु तक 'जनम' 24 नुक्कड़ नाटकों को 4000 बार प्रदर्शित कर चुका था। इन नाटकों का प्रदर्शन मुख्यत: मजदूर बस्तियों, फैक्टरियों और वर्कशॉपों में किया गया था। सफदर हिंदुस्तान की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य थे। 1979 में उन्होंने अपनी कॉमरेड और सह नुक्कड़ कर्मी 'मलयश्री हाशमी' से शादी कर ली। बाद में उन्होंने 'प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया' और 'इकोनॉमिक्स टाइम्स' के साथ पत्रकार के रूप में काम किया।वे दिल्ली में पश्चिम बंगाल सरकार के 'प्रेस इंफोरमेशन ऑफिसर' के रूप में भी तैनात रहे। 1984 में उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और खुद का पूरा समय राजनैतिक सक्रियता को समर्पित कर दिया। सफदर ने दो बेहतरीन नाटक तैयार करने में अपना सहयोग दिया, मैक्सिम गोर्की के नाटक पर आधारित 'दुश्मन' और प्रेमचंद की कहानी 'मोटेराम के सत्याग्रह' पर आधारित नाटक जिसे उन्होंने हबीब तनवीर के साथ 1988 में तैयार किया था। 1जनवरी 1989 को जब दिल्ली से सटे साहिबाबाद के झंडापुर गांव में ग़ाज़ियाबाद नगरपालिका चुनाव के दौरान नुक्कड़ नाटक 'हल्ला बोल' का प्रदर्शन किया जा रहा था तभी जनम के ग्रुप पर कांग्रेस (आई) से जुड़े कुछ लोगों ने हमला कर दिया। इस हमले में सफदर बुरी तरह से जख्मी हुए। उसी रात को सिर में लगी भयानक चोटों की वजह से सफदर की मृत्यु हो गई। 'रामबहादुर' नामक एक नेपाली मजदूर की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिसने जनम के सदस्यों को आश्रय देने का साहस किया था। दो दिन बाद, 4 जनवरी 1989 को मलयश्री हाशमी, 'जनम' की टोली के साथ उस स्थान पर वापिस लौटीं और अधूरे छूट गए नाटक को खत्म किया। इस घटना के 14 साल बाद गाजियाबाद की एक अदालत ने 10 लोगों को हत्या के मामले में आरोपी करार दिया।
सफदर 'राज्य की तानाशाही' के खिलाफ भारतीय वामपंथी आंदोलन के लिए एक सांस्कृतिक प्रतिरोध का प्रतीक बनकर उभरे। 'जनम' ने दिल्ली में अपना कार्य जारी रखा। फरवरी 1989 में भीष्म साहनी और अन्य बुद्धिजीवियों ने मिलकर 'सफदर हाशमी मैमोरियल ट्रस्ट'(सहमत) का निर्माण किया।
जनवादी लेखक संघ बिहार