देश में बहस का ताज़ा मुद्दा यह है कि जब कोरोना के मामले सैकडों में थे तो सरकार ने देश को महीनों के लिए लॉक कर दिया। आज जब संक्रमण के मामले लाखों में हैं तो देश को लगभग पूरी तरह खोल दिया गया है। अपने लोगों की समझ और अनुशासन का जो स्तर बाजारों, रेल और बस स्टैंडों, सड़कों, मदिरालयों या पूजा-स्थलों पर दिखता है उससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि जल्द ही हम कोरोना से प्रभावित देशों की सूची में पहले नंबर पर आने वाले हैं। डर तो लगता है, लेकिन सरकार भी क्या करे। देश की आधी से भी ज्यादा आबादी रोज़ कमाने-खाने वालों, छोटे व्यवसायियों या अल्प वेतनभोगी लोगों की है। ऐसे साठ-सत्तर करोड़ लोगों को महीनों बिठाकर खिलाने की शक्ति दुनिया के किसी भी देश में नहीं है। सरकार संकट से किनारा कर रही है। अब गेंद हमारे पाले में है। हम महीनों से संक्रमण से बचने के तरीके सीख रहे है। अब यह हम पर है कि सुरक्षा संबंधी तमाम दिशानिर्देशों का पालन कर खुद को और अपने परिवार को बचाएं। अपनी लापरवाही से कोई अगर कोरोना की चपेट में आ गया तो होगा यह कि सरकारी अस्पतालों में उसके लिए जगह नहीं होगी, निजी अस्पताल जीते जी उसे और उसके परिवार को भी मार डालेंगे और सेल्फ क्वारंटाइन होने के लिए घरों में वातावरण नहीं होगा।
इस आपदा में सरकार लाचार है। काम के अत्यधिक बोझ से स्वास्थ्यकर्मी, प्रशासन और पुलिस के लोग थकने और टूटने लगे हैं। अब अपना ख्याल हमें खुद रखना होगा। कोई अगर आत्महत्या पर ही उतारू हो जाएं तो उसे सरकार तो क्या, ईश्वर भी नहीं बचा सकता !
DHRUV GUPT
retd. IPS officer