मानव अधिकार कानून और लोकतंत्र की रक्षा कौन करेगा ?
चंद रोज पहले की बात है
मैं और सोनी सोरी एक गाँव के आदिवासियों से बात कर रहे थे
उन आदिवासियों ने मुझे जो बताया उसे सुन कर मैं बहुत डर गया हूँ
उन आदिवासियों के गाँव में एक महीना पहले दो ग्रामीणों की हत्या कर दी गई थी
मारे गये दो लोगों में से एक पंद्रह साल का किशोर था और दूसरा उसका चाचा जिसकी उम्र चालीस साल थी
यह लोग अबूझमाड़ के गाँव पीडियाकोट में रहते हैं
दंतेवाडा जिले की सीमा पर बहने वाली इन्द्रावती नदी के पार करीब बीस किलोमीटर दूर इनका गाँव है
इन लोगों को राशन का चावल लेने इन्द्रावती नदी पार करके तुमनार सरकारी दूकान पर आना पड़ता है
21 मई 2020 की बात है
रीसू और उसका चाचा माटा घर की महिलाओं के साथ चावल लेने आये थे
उनके पड़ोसी गाँव के लड़कों को यह बात पता थी
पड़ोसी गाँव के उन लड़कों के साथ चाचा माटा का एक बार किसी बात पर झगड़ा हुआ था
उन लड़कों ने बदला लेने के लिए अपने सिपाही दोस्तों को गीदम थाने में फोन कर दिया
गीदम थाने से बड़ी तादात में डीआरजी फ़ोर्स के सिपाही लूंगी बनियान पहन कर अपनी बन्दूकों को बोरी में छिपा कर इद्रावती नदी पर पहुँच गये
वहाँ पर रीसू और उसका चाचा माटा नाव में रख कर चावल नदी के पार पहुंचा रहे थे
डीआरजी के सिपाहियों ने बोरी से बंदूकें निकाली और चाचा भतीजे को पकड़ लिया
माटा की पत्नी और परिवार की अन्य महिलाओं ने इन सिपाहियों से अपने परिवार के पुरुषों को छोड़ देने के लिए बहुत प्रार्थना की
लेकिन सिपाहियों ने रीसू और माटा के हाथ उनके गमछे से पीछे बाँध दिए और उन्हें करीब आधा किलोमीटर दूरी पर घने पेड़ों के पीछे ले जाकर गोली मार दी
उसके बाद पुलिस विभाग की तरफ से विज्ञप्ति पत्रकारों के व्हाट्सएप पर भेज दी गई
कि हमारे विभाग ने दो इनामी नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया है जिनमें से एक के ऊपर आठ लाख का और दुसरे के ऊपर पांच लाख का इनाम था
जाहिर है इस तरह से सरकारी पैसे खाए जा रहे हैं
लेकिन मामला इससे भी ज्यादा गम्भीर है
यह कोई पुलिस विभाग की कार्यवाही नहीं थी
बाद में अपने सिपाहियों को बचाने के लिए फर्जी कहानी बनाई गई है
यह सीधे सीधे सुपारी किलिंग है
लेकिन अगर पुलिस के सिपाही अपने दोस्तों के दुश्मनों को निपटाने के लिए सरकारी बंदूक सरकारी गोलियां और सरकारे मोटर साइकिलों का इस्तेमाल करते हैं
और उन्हें कोई सजा नहीं होती
तो फिर मामला बहुत गम्भीर है
यह पुलिस द्वारा क़ानून संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाने का मामला है
डीके बसु गाइड लाइन में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि गिरफ्तारी के समय पुलिस परिवार को बतायेगी कि आपके सदस्य को ह्म किस आरोप में कार्यवाही हेतु ले जा रहे हैं
गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी अपने नाम पर पद की पट्टी लगाएगा
लेकिन यहाँ क्या हुआ
सिपाही लूंगी पहन कर आये और अपने मूंह भी उन्होंने कपड़ों से छिपाए हुए था
पकड़ने के बाद भी उन्होंने उन पर मुकदमा चलने की बजाय सीधे गोली से उड़ा दिया
खैर यह तो हुई इन सिपाहियों के अपराध की बात
यह डीआरजी की सिपाही तो कानून की कोई इज्जत नहीं करते
यह लड़के पहले नक्सलियों के साथ थे अब पुलिस के लिए काम करते हैं
पहले इन्हें एसपीओ कहा जाता था
अब सुप्रीम कोर्ट ने इनसे बंदूकें वापिस लेने का आदेश दिया तो सरकार ने इनका नाम बदल कर डीआरजी कर दिया
लेकिन चिंता का विषय तो ऊपर के अधिकारी हैं
ऊपर के अधिकारियों को तो क़ानून संविधान सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश की जानकारी है
यह ऊपर के अधिकारी अगर क़ानून संविधान सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं करेंगे तो संकट पैदा हो जाएगा
संविधान के अनुसार हर नागरिक को जिंदा रहने का अधिकार है
और नागरिक के इस अधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है
इसी काम के लिए नागरिक के टैक्स से बंदूक खरीदी जाती है सिपाही को तनख्वाह दी जाती है
अब अगर उसी नागरिक को वह सिपाही जान से मार देता है तो कानून उस सिपाही को जेल में डालेगा
यदि ऐसा नहीं होता तो कानून और संविधान का राज खत्म माना जाएगा
छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में संविधान का राज समाप्त हो गया है
अब यहाँ के आदिवासी अपनी किस्मत से ही जिन्दा है
अब बस्तर के आदिवासी सिपाहियों के रहमो करम पर जिन्दा हैं
आदिवासियों को खूंखार भेड़ीयों के हवाले कर दिया गया है
आप किसी भी आदिवासी गाँव में चले जाइए
आपको खून आंसुओं और लड़कियों की चीखों से भरी दसियों कहानियाँ मिल जायेंगी
सुप्रीम कोर्ट ने इस सब के खिलाफ आदेश दिया है
लेकिन पालन तो सरकार को करवाना है
लेकिन अगर सरकार को ही आदिवासी को डरा कर उसकी ज़मीनें छीन कर अडानी और दुसरे धनपशुओं को देने में फायदा हो
तो फिर संविधान लोकतंत्र नागरिक अधिकार महज खोखले शब्द बन जाते हैं
बस्तर में यही चल रहा है
तो इस मामले में लेटेस्ट अपडेट यह है कि मामला हाई कोर्ट में फ़ाइल होने के लिए भेज दिया गया है
मैं जब माटा की पत्नी और रीसू की बहनों को अपने सामने बैठ कर रोते हुए देखता हूँ तो मेरा दिल दुःख से फटने लगता है और गुस्से से बेचैन हो जाता हूँ
और फिर मैं वह याद करता हूँ जो मेरे पिताजी गांधी जी की बात बताते थे
गांधी कहते थे अपने गुस्से को अपनी ताकत बनाओ अपनी कमजोरी नहीं
हम वही करेंगे