इन्दिरा गाँधी के ख़िलाफ़ 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला आ चुका था। 14 जून को जयप्रकाश नारायण (जेपी) इलाहाबाद में थे। यहाँ से उन्हें जबलपुर जाना था। वे इलाहाबाद जंक्शन के विश्राम-कक्ष में ठहरे हुए थे।
डॉ. बनवारी लाल शर्मा की पहल पर हम युवा कार्यकर्ताओं और साथियों को जेपी के सांनिध्य में बैठने और उनसे सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करने का सौभाग्य मिला था।
जेपी डॉ. शर्मा को प्रोफ़ेसर साहब कहा करते थे। बातचीत के दौरान जब सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के देशव्यापी फैलाव व प्रभाव तथा आन्दोलन में छात्रों, युवजनों, बुद्धिजीवियों व आम लोगों के बढ़ते सहभाग पर खुली चर्चा होने लगी, तब जेपी ने बन्द कमरे में यह कहकर हम लोगों को चैंका दिया---“प्रोफ़ेसर साहब! कहीं कोई आन्दोलन नहीं है। यह सब तमाशबीनों, निहित स्वार्थों और कुर्सी की चाह रखने वालों की भीड़ है। आन्दोलन तो अब नीचे से यानी Grass-roots level से बुनियादी परिवर्तन के लिए खड़ा करना होगा।---सत्ता व दल की राजनीति से दूर रहने वाले जो लोग इस समय आगे आये हैं, उन पर जनता की ताक़त खड़ी करने की जि़्ाम्मेदारी है।----अब आगे मैं सहरसा जाऊँगा।---वहीं गाँवों में यानी नीचे से जनता सरकार खड़ी करने के काम में लगूँगा---।”
जेपी की महीन काँपती-कमज़ोर, पर गम्भीर आवाज़ को डॉ. शर्मा ने यह कहकर विराम दे दिया कि जब आप जबलपुर से दिल्ली पहुँचेंगे, तब आपका सहरसा जाना न हो पायेगा। इन्दिरा गाँधी के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट के फ़ैसले के चलते दिल्ली में विरोधी दल महारैली करेंगे। आगे डॉ. शर्मा ने चुटकी लेते हुए कहा----“विरोधी दल के नेता टाँगकर आपको उस रैली में ले जायेंगे। आप मना नहीं कर पायेंगे। आप उस रैली को सम्बोधित करेंगे और कहेंगे कि ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’।”
डॉ. शर्मा की जबान पर सरस्वती बैठी हुई थीं। जेपी सचमुच दिल्ली में 25 जून को आयोजित इतनी बड़ी रैली में बोलने के लिए गये, जितनी बड़ी उसके पहले वहाँ सम्भवतः कभी नहीं हुई थी। 25 जून को दिन में रैली थी और 25-26 जून की रात इमरजेंसी का क़हर टूट पड़ा। सहरसा जाने के बजाय जेपी जेल चले गये।
कृष्णस्वरूप आनन्दी