एक्सक्लूसिव......
श्रावणी मेले की भी अब उम्मीद कम ......
देवघर से राहुल सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट
देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर देश के प्रसिद्ध मंदिरों में एक है। यहां पिछले ढाई महीने से लाॅकडाउन को लेकर दरवाजे बंद हैं। इस मंदिर से पंडा-पुरोहित सहित बड़ी संख्या में सहयोगी कार्याें व दुकानों से लोगों को रोजगार मिलता है। ऐसे समय में जब 8 जून से पड़ोसी बंगाल, बिहार व यूपी के मंदिर व अन्य धार्मिक स्थल खुल रहे हैं, तब भी बाबाधाम के दरवाजे बंद रहेंगे। बावजूद इसके स्थानीय पुरोहित समाज में नाराजगी नहीं है और महामारी को रोकने के लिए वे अपनी आर्थिक चुनौतियों को झेलने को तैयार हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित महेश पलिवार कहते हैं कि देवघर में कल कारखाना है नहीं, मंदिर ही यहां की अर्थव्यवस्था की धुरी है। इसके बावजूद कोरोना संक्रमण की वजह से मंदिर को श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बंद रखने का निर्णय उचित है।
बैद्यनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित महेश पलिवार
कार्तिकनाथ ठाकुर बताते हैं, पंडा धर्मरक्षिणी सभा में साढे चार हजार पुरोहित सूचीबद्ध हैं, जबकि करीब 800 लोगों को सूचीबद्ध किए जाने की प्रक्रिया चल रही है। इस संकटपूर्ण समय में सभा ने छह हजार परिवारों को मदद पहुंचायी है। प्रशासन की ओर से भी करीब साढे तीन हजार परिवारों को मदद दी गयी है। हमने सभा द्वारा संग्रहित दो लाख रुपये प्रशासन को दिए, ताकि इससे मंदिर से जुड़े अन्य सहयोगी कार्य के जरिए रोजगार पाने वाले लोगों तक मदद पहुंचायी जा सके। पंडा समाज से आने वाले पत्रकार व एक स्थानीय अखबार के संपादक उदय खवाड़े कहते हैं, मंदिर से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में बाबानगरी में रोजगार सृजन होता है, लेकिन कोविड 19 के संक्रमण से उन पर संकट खड़ा हो गया है। उनके अनुसार, चार हजार से ज्यादा पुजारियों के अलावा एक हजार लोग फूल, बेलपत्र एवं अन्य पूजन सामग्री बेचकर रोजगार पाते हैं, एक हजार ऐसे लोग हैं जो पंडा-पुजारियों के सहयोगी के रूप में काम करते हैं।
बाबाधाम में शिवगंगा
ये लोग आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के होते हैं और शहर में ही रहते हैं। पर मौजूदा संकट ने इन सबके रोजगार पर संकट उत्पन्न कर दिया। साथ ही तीन हजार पेड़ा व्यवसायी हैं जो प्रत्यक्ष तौर पर मंदिर से ही रोजगार पाते हैं। इसके अलावा अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में करीब दो लाख की आबादी वाले इस शहर में रोजगार का सृजन होता है। इन चुनौतियों पर पत्रकार दिनकर ज्योति अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हैं। वे कहते हैं, मेरे दादा की पीढी के बाद मेरे परिवार से किसी ने तीर्थ पुरोहित का कार्य पेशे के रूप में नहीं चुना, क्योंकि इसमें बहुत चुनौतियां हैं। वे कहते हैं कि मेरे पिता व चाचा दूसरे पेशे में चले गए, हम सब भाई भी अलग-अलग तरह की नौकरियों में हैं, कई लोग बाहर हैं तो कुछ यहां दूसरे काम धंधे व नौकरियों में हैं। दिनकर कहते हैं कि बहुत सारे श्रद्धालु पंडाजी के घर में ठहरते हैं, उनका बिजली-पानी सबकुछ उपयोग करते हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त आय नहीं होती, वहीं अगर श्रद्धालु होटल-आश्रम में ठहरेंगे तो उन्हें काफी अधिक खर्च करना पड़ता है। दिनकर ज्योति होशियार पंडा के वंश से आते हैं और इनके परिवार के लोग 22 मंदिरों वाले बाबा मंदिर प्रांगण में स्थित सूर्य नारायण मंदिर के पुजारी हैं। दुकानदार व रिक्शाचालक क्या कहते हैं? मंदिर गली में बरतन की दुकान चलाने वाले झलको मिश्र कहते हैं, लाॅकडाउन में कारोबार पूरा बैठ गया है। दुकान किराये पर है तो मकान मालिक को भी पैसा देना है, बिजली बिल भी देना है और बिक्री शून्य है। मंदिर के सिंहद्वार पर पेड़ा की दुकान चलाने वाले सोहन दत्त द्वारी कहते हैं कि कमाना-खाना तो जीवन भर है, लेकिन इस समय सबसे जरूरी बीमारी से बचना है। वे बताते हैं कि दो भाई हैं जो बारी-बारी से दुकान पर बैठते हैं।
रिक्शा चालक भागीरथ व जनार्दन यादव कहते हैं, आज पहली बार हमलोग रिक्शा लेकर निकले हैं, बंद से कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। धार्मिक नगरी होने के कारण देवघर में दिन व रात दोनों पारी में रिक्शा चलता है। यहां बहुत सारे श्रमिक देर शाम से सूर्याेदय के पहले तक रिक्शा चलाते हैं और दिन में कोई अन्य कार्य करते हैं। लेकिन इस लाॅकडाउन में न श्रद्धालुओं की आवक है और न स्थानीय गतिविधियों ने गति पकड़ी है तो इनका रोजगार भी लगभग बंद ही है। देवघर में पूजा-पाठ व जनेऊ, मुंडन जैसे धार्मिक अनुष्ठान के अलावा बड़ी संख्या में शादियां होती हैं। यहां बड़ी सख्या में मैरेज हाॅल, विवाह गृह-आश्रम आदि हैं, लेकिन इस महामारी में एक तो शादियां हो नहीं रही हैं, जो हो भी रही हैं, उसमें कम लोगों की मौजूदगी के कारण विवाह आधारित रोजगार भी ठप्प है। आषाढ शुरू होने पर भी श्रावणी मेले की तैयारी की कोई सुगबुगाहट नहीं आषाढ का महीना शुरू हो चुका है। इस महीने को बाबाधाम यानी देवघर में श्रावणी मेले की तैयारी का महीना माना जाता है। इस मेले की तैयारी में झारखंड व बिहार के वे जिले शामिल होते हैं, जिनके क्षेत्र से होकर पैदल कांवरियां गुजरते हैं। बाबा धाम की कांवर यात्रा बिहार के भागलपुर के सुल्तानगंज से गंगा से जल लेकर आरंभ होती है और देवघर के बाबाधाम तक पहुंचती है और फिर इसका विस्तार दुमका जिले में पड़ने वाले बासुकीनाथ मंदिर तक है।
सुल्तानगंज से देवघर की दूरी करीब 107 किमी है, जबकि देवघर से बासुकीनाथ की दूरी 40 किमी। श्रावणी मेले की तैयारी में बिहार की तीन जिले भागलपुर, मुंगेर व बांका और झारखंड के दो जिले देवघर व दुमका सीधे तौर पर शामिल होते हैं। सावन के महीने में शुरू होने वाली व्यापक कांवर यात्रा भले श्रावणी मेला कहलाती हो, लेकिन इसका विस्तार अब भादो व आधा आश्विन यानी ढाई महीने तक हो चुका है। यानी मात्र एक महीने बाद आरंभ होने वाले श्रावण मास में अगर कांवर यात्रा की सरकार से अनुमति नहीं मिलती है तो यह संभवतः मौजूदा पीढी के लिए पहला ऐसा मौका होगा, जब मेले का आयोजन नहीं होगा। 30 जून तक यूं भी झारखंड सरकार ने धार्मिक स्थलों को खोलने की अनुमति नहीं देने का निर्णय लिया है और उसके मात्र पांच दिन बार श्रावण मास शुरू होगा तो ऐसे में मेले के आयोजन की संभावना क्षीण नजर नहीं आती। श्रावण मेले से जुड़े सवाल पर पंडा धर्मरक्षिणी सभा के महामंत्री कार्तिकनाथ ठाकुर कहते हैं, हमारे ख्याल से बिहार सरकार मेले से मना कर रही है। इससे क्या आर्थिक दुष्प्रभाव पड़ेगा, वह परिलक्षित हो रहा है। बाबा बैद्यनाथ एक ऐसे ज्योतिर्लिंग हैं, जहां स्पर्शपूजा का महत्व है और हम चाहते हैं कि यह व्यवस्था हमेशा रहे। श्रावणी मेले में 10 से 15 हजार पुलिसकर्मी व इतने ही अन्य सरकारी कर्मी यहां जुटते हैं और हर दिन डेढ से दो लाख श्रद्धालु होते हैं, फिर भी बैकलाॅग में श्रद्धालु दर्शन के लिए छूट जाते हैं। वे कहते हैं कि अगर सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन कड़ाई से किया जाएगा तो 20 से 25 हजार श्रद्धालुओं को ही पूजा का मौका मिल सकेगा। बहरहाल, बड़ा सवाल यह है कि श्रावणी मेले का आयोजन नहीं होने पर पांच जिलों में कांवरियां पथ के किनारे जो हजारों अस्थायी रोजगार का सृजन हर वर्ष होता था, वह भी इस बार नहीं होगा।
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