ये हैं ओडिशा के 'हो' आदिवासी समुदाय की लिपिका सिंह दोराई, 2010 से 2017 के बीच तक फ़िल्म निर्देशन और ऑडियोग्राफी के लिए 4-4 नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली फिल्ममेकर।
लिपिका ने ओडिशा में अपने गांव से ओड़िया मीडियम में स्कूली पढ़ाई की, फिर विशाखापत्तनम से बीकॉम करके FTII, पुणे से ऑडियोग्राफी का कोर्स किया।
FTII में पहुंचकर लिपिका की सृजनात्मकता को नया आकार मिला, वे बचपन से ही अपने समुदाय में गाए जाने वाले गीतों को गाती थीं, उन गीतों की लय को जीती थीं, उनकी आवाज़ मीठी भी है, FTII में पढ़ते हुए वे टेक्नोलॉजी को संगीत में इस्तेमाल करना सीख गयीं। और इस तरह से उनको 'गरुड़ा' फ़िल्म के लिए 2010 में ऑडियोग्राफी के लिए नेशनल अवॉर्ड भी मिला।
एक गाछ, एक मनुष्य, एक समुंदर’, 'वॉटरफॉल' को भी नेशन अवॉर्ड मिला था।
उनकी फिल्में बाज़ारवाद से परे प्रकृति, पर्यावरण और समष्टि को समर्पित हैं। प्रकृति और मनुष्य के सहजीवी संबंध को उन्होंने अपने समुदाय से सीखा।
वे कहती भी हैं कि "फिल्में केवल मनोरंजन के लिए नहीं होनी चाहिए उनमें सामाजिक संदेश भी होना चाहिए, इसलिए एक फ़िल्म निर्देशक को और अधिक ज़िम्मेदार होना चाहिए।"
लिपिका की सामाजिकता को इस बात से भी जाना जा सकता है कि उन्होंने कलबुर्गी की हत्या के विरोध में अपना अवॉर्ड वापस कर दिया था।
आदिवासी समाज की सफलताओं की यह दस्तक एक सुखद अनुभूति देती है। रंग, जाति और लिंगगत भेदभाव से भरे हुए बॉलीवुड की दुनिया से हट कर अपनी एक अलग पहचान बनाना बेहद मुश्किल काम है जिसे लिपिका ने कर दिखाया है।