8 अगस्त जंगे आजादी की वह तारीख है, जो सुराजियों के किये गए तमाम सियासी और सामाजिक प्रयोगों का नतीजा देने जा रहा था । भारत की आजादी के जोश में आत्मसंयम और होश का समन्वय जांचने की तारीख थी । भारत आजादी के लिए तैयार है या अभी नही ? ( यह आकलन मुट्ठी भर नेताओं और कुछ सियासी सोच के सर्वराहकारों तक ही महदूद नही था, बल्कि आम आदमी या आखिरी पायदान पर बैठे आदमी की भागीदारी भी मापने की तारीख रही ) क्योंकि आज अहिंसा का पुजारी महात्मा गांधी बोल रहा है - करो या मरो । अंग्रेजो भारत छोड़ो ।
और गांधी सफल हो गए। देश उठ खड़ा हुआ। अकबर इलाहाबादी के शब्दों में
'गो मुश्त-ये-खाक है, पर आंधी के साथ है
बुद्धू मियां भी, हजरत गांधी के साथ है
ये जो गांधी के साथ है, इसे ही जगाने के लिए गांधी ने अहिंसा और सत्य के अनेक प्रयोग किये। आज नतीजा सामने था - 8 अगस्त दीवार पर खुदी एक इबारत खुरच कर हटा रहा है - कोउ नृप होंय, हमे का हानी ' इसकी जगह ,अपने मन और मिजाज में संकल्प ले रहा था - खुदमुख्तारी।
अपनी हुकूमत हम खुद होंगे। गांधी की अपेक्षा खरी उतर रही थी आंदोलन जन जन के हाथ मे था। कांग्रेस के अंदर से निकल रही दूसरी कतार ने आंदोलन अपने हाथ मे ले लिया। डॉ लोहिया, जे पी, अच्युत पटवर्धन, जी.जी. पक़रीख, उषा मेहता।
कल 9 अगस्त को बंम्बई कांग्रेस के तयशुदा कार्यक्रम की शुरुआत करने जा रही एक लड़की - अरुणा आसफअली ।
अरुणा आसफअली ने 9 अगस्त को तिरंगा फहराकर तवारीख में 9 अगस्त का एक और चमकदार पन्ना जोड़ दिया ।
आगाखां पैलेस में कैद गांधी जी 9 की सुबह इत्मीनान से चरखा कात रहे थे , जब अंग्रेज सार्जेंट ने बापू से पूछा - आंदोलन तो टूट गया, सारे नेता जेल में हैं ? बापू ने कहा था - देश जनता के हवाले है ।।