वो आखिरी शाम जो जीवन की सबसे खूबसूरत शाम थी ।"अ सोल्जर नेवर क्विट"- कैप्टन दीपक साठे

वह 07-अगस्त-2020 की शाम थी । भारत सरकार के "वंदे भारत मिशन" जो करोना महामारी की वजह से दुनियाभर में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी का मिशन था, के तहत दुबई से बोइंग-0737-800 कालीकट को वापस लौट रही थी । विमान में क्रू मेंबर्स सहित कुल 195 सदस्य थे और नियंत्रण कैप्टन दीपक साठे के हाथों में था ।


कोझिकोड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जब विमान उतरने वाला था, तेज रफ्तार बारिश हो रही थी । एयर ट्रेफिक कंट्रोल नें तेज बारिश की सूचना दे दी थी और उस वक्त विजिबिलिटी 2000 मीटर थी ।


विमान को रनवे 28 पर उतरना था, कैप्टन दीपक साठे एक अनुभवी पायलट थे, विमान नें नीचे गोता लगाया पर लैंडिंग के ठीक पहले वापस उड़ गया ! रनवे पर मौजूद लोगों की सांसें थम गई । किसी अनहोनी की आशंका से सभी भयभीत हो उठे । विमान नें कुछ वक्त बाद लैंडिंग कि एक कोशिश और की जो फेल हो गई । तबतक एटीसी सहित हवाई अड्डे के सारे कर्मचारियों तक खबर हो चुकी थी कि कुछ अघटित होने की आशंका है ! नीचे इमरजेंसी अलर्ट हो चुका था और हवा में कैप्टन दीपक साठे अपनें जीवन की आखिरी लैंडिंग के लिए विमान को नोज-डाउन कर चुके थे !


पर फिलहाल यह तीसरी कोशिश, रनवे-28 पर नहीं रनवे-10 पर थी । विमान का पेट्रोल खत्म हो चुका था और वह और उड़ने की स्थिति में नहीं था लिहाज़ा लैंडिंग भी विपरीत दिशा से हो रही थी । विमान इस तरफ से टेक-आफ करते थे ।


कोझिकोड हवाई अड्डा एक टेबल टाप एयरपोर्ट है, जहाँ रनवे बेहद छोटा है और लैंडिंग या टेक-आफ के लिए रनवे स्ट्रिप ना सिर्फ छोटी है बल्कि अगल बगल की जगह भी बेहद सिमित है । एक पहाड़ के टाप पर बने इस एयरपोर्ट के दोनों तरफ गहरी खाई है ।


एयर इंडिया एक्सप्रेस-IX फ्लाइट संख्या 1344 नें गोता लगाया ! लैंडिंग की यह तीसरी और आखिरी कोशिश थी, क्योंकि विमान का टैंक पूरी तरह खाली था । कैप्टन दीपक साठे के लिए यह जीवन की आखिरी लैंडिंग भी होनें वाली थी ।


रनवे-10 पर विपरीत दिशा से विमान नें लैंड किया ! विमान पूरी रफ्तार में था टच डाउन के साथ ही यह लैंडिंग क्रेश लैंडिंग थी जिसे "बैली-लैंडिंग" कहते हैं विमान रनवे से फिसल गया और इसका दायाँ विंग रगड़ने लगा । पूरे रनवे को पार कर फिसलते हुए विमान एयरपोर्ट के आखिरी हिस्से को पार करते हुए 30 फिट गहरी खाई में गिरा और दो टुकड़ो में बंट गया ।


विमान का काकपिट बुरी तरह क्षतिग्रस्त था पर यात्री सुरक्षित थे और जैसा कि आमतौर पर क्रश लैंडिंग में होता है उसके विपरीत विमान आग के हवाले नहीं था । यकीनन यात्रियों का सुरक्षित रहना और विमान में आग न लगना पायलट की सूझबूझ का नतीजा था ।


कोझिकोड एयरपोर्ट भारत के गिनती के टेबल-टाप एयरपोर्ट में से एक है । इसके अलावा कालीकट, मंगलौर लेंगपुई (मिजोरम) और पाकयोंग (सिक्किम) भारत में मौजूद अन्य टेबल-टाप एयरपोर्ट हैं । पूरी दुनिया में टेबल-टाप एयरपोर्ट सिर्फ चार मुल्कों में है । भारत के अलावा नेपाल नीदरलैंड और अमरीका वो अन्य देश हैं जहाँ मोजूदा वक्त में टेबल-टाप एयरपोर्ट हैं ।


एक हवाई अड्डे पर विमान को उतरने या उड़ने के लिए रनवे के साथ साथ सेफ्टी एरिया होता है । किसी वजह से लैंडिंग या टेक-आफ में मुश्किल होने पर यह सेफ्टी एरिया विमानों को अतिरिक्त जगह मुहैया करता है । टेबलटाप एयरपोर्ट पहाड़ियों की ऊचाइयों पर बनें होते हैं लिहाज़ा न सिर्फ़ उनका रनवे छोटा होता है, बल्कि सेफ्टी एरिया भी लगभग नहीं होता है, साथ ही रनवे की चौड़ाई भी कम होती है ।


कोझिकोड में रनवे-10 जिसपर विमान नें लैंड किया उसका रनवे और सेफ्टी एरिया बेहद छोटा था और रनवे के दोनों तरफ गहरी खाई थी । जिसपर लैंडिंग के लिए पायलट की सूझबूझ पर ही सब निर्भर होता है ।


जहाज के पायलट दीपक साठे के पास बीते पैतीस सालों का जहाज उड़ाने का अनुभव था जिसमें से पहले 21 साल वो एयरफोर्स के पायलट रहे थे और एयर इंडिया उन्होंने 2005 में ज्वाइन की थी । बेहद हंसमुख और मिलनसार कैप्टन दीपक साठे की आंखे बोलती सी मालूम होती थी ।


मिशन-वंदे भारत के तहत कैप्टन दीपक साठे लगातार दुबई और भारत के बीच उड़ रहे थे । नागपुर के रहने वाले दीपक साठे एक बेहद अनुभवी पायलट थे और ऐसा माना जाता है कि 07-अगस्त-2020 की रात विमान के बचे यात्रियों और क्रू मेंबर की जान कैप्टन दीपक साठे की सूझबूझ की वजह से बची थी ।


शाम के वक्त जब कैप्टन नें एयर ट्रैफिक कंट्रोल से लैंडिंग के लिए अनुमति मांगी उस वक्त सिंदूरी शाम बेहद खूबसूरत थी, कोझिकोड के हवाईअड्डे पर मूसलाधार बारिश हो रही थी और हवाएँ तेज थी । बेशक मौसम बेहद खुबसूरत था पर यह खूबसूरती एक पायलट के लिए बेहद खतरनाक होती है क्योंकि रनवे पर इससे फिसलने के खतरे बढ़ जाते हैं और छोटे से रनवे और सेफ्टी एरिया की वजह से जरा सी भी गलती की गुंजाइश नहीं रहती ।


ऐसा अनुमान है, कि लैंडिंग की कोशिश के साथ कैप्टन दीपक साठे को यह समझ में आ गया था कि जहाज का लैंडिंग गियर फेल हो गया है । लैंडिंग गेयर फेल होनें का मतलब ही है कि जहाज की क्रश-लैंडिंग ही होगी । जहाज जमीन पर व्हील्स नहीं बैली लैंडिंग करेगा ।


क्रश-लैंडिंग के साथ सबसे बड़ा खतरा आग का होता है । जहाज के टैंक में मौजूद फ्यूल यात्रियों सहित जहाज को भस्म कर देता है । कैप्टन साठे को क्रश-लैंडिंग का अनुभव था । एयरफोर्स में रहते हुए नब्बे के शुरुआती दशक में उनका जहाज क्रश हुआ था और उनकी स्कल्स (खोपड़ी) तक फ्रेक्चर हो गई थीं । कैप्टन साठे की अदम्य इक्षाशक्ति और साहस नें न सिर्फ उन्हें अपनें पैरों पर खड़ा किया बल्कि वापस लड़ाकू जहाज उड़ाने के लिए भी तैयार किया जो बाद में अपनी जान देकर 190 जिंदगियों को बचाने की वजह भी बना ।


लैंडिंग गियर फेल होने का आभास पाते ही कैप्टन साठे नें तत्काल लैंडिंग गीयर का लीवर उपर करते हुए जहाज को वापस ऊचाईयों पर ले लिया । जहाज बोइंग 737-800 था जिसमें सामान और करीब 195 व्यक्ति सवार थे ।


कैप्टन साठे के लिए उनकी जान की हिफाज़त सबसे अहम थी । खुद की परवाह न करते हुए दूसरों की हिफाज़त करना उनके खून में था । उनके भाई कैप्टन विकास जम्मू रीजन में आम नागरिकों की हिफाजत करते हुए ही आतंकवादियों की गोली से शहीद हुए थे । अपने अनुभव से वो समझ चुके थे कि यह शाम शायद उनकी आखिरी शाम है क्योंकि बैली-लैंडिंग के साथ जहाज को फिसलते हुए कहीं न कहीं टकराना ही था और जहाज के नोजल पार्ट का इसमें चकनाचूर होना भी लाजिम था पर वो बाकी यात्रियों और क्रू के लिए चिंतित थे और हवा में उड़ते हुए उन्होंने फ्यूल टैंक खाली करना शुरू किया ।


फ्यूल टैंक करीब करीब खाली था ! कैप्टन साठे नें लैंडिंग की दूसरी कोशिश की, जहाज नें डाईव किया पर तेज बारिश की वजह से बनी लो विजिबिलिटी और एकाएक आई किसी और तकनीकी वजह से ऐसा अनुमान है जहाज को फिर से टेक आफ लेना पड़ा । दूसरी लैंडिंग करीब करीब टच डाऊन लैंडिंग थी ।


फ्यूल टैंक अब करीब करीब खाली था । रनवे-28 पर लौटकर वापस जाना संभव नहीं था । सामनें रनवे-10 था जिसके टेक-आफ एंड पर दीपक साठे का विमान था । कैप्टन साठे नें विपरीत दिशा से ही लैंडिंग की कोशिश की, क्योंकि अब कोई चारा नहीं बचा था ।


वो एक बेहद खूबसूरत शाम थी । पहाड़ियों के पार हरियाली गाढ़े अंधेरे की तैयारी में थी । सूरज दूर क्षितिज पर अपनी सिंदूरी आभा लिए डूब रहा था, इन विपरीत परिस्थितियों में तेज बारिश कैप्टन को समस्या नहीं दोस्त लगी, बैली-लैंडिंग में आग लगने पर यह बारिश "अच्छी-दोस्त" थी ।


कैप्टन साठे नें अपनें युवा कोपायलट को देखा आंखों आंखों में गुड-लक कहते साठे नें लैंडिंग लीवर डाऊन कर दिया । जहाज तेजी से गोता लगाते नीचे आया लैंडिंग के साथ पैदा "थ्रस्ट" से जहाज हिल गया और फिर रनवे पर फिसलता चला गया ।


रनवे के पार सेफ्टी एरिया को पार करता जहाज गहरी खाई में जा गिरा और दो टुकड़े में बंट गया । लैंडिंग के एन पहले कैप्टन साठे नें जहाज को हल्का दायीं तरफ टिल्ट कर दिया था, जिधर उनकी सीट थी लिहाजा जहाज की नोज जब सामनें दिवार और पहाड़ी से लड़ी तो काकपिट का बायां हिस्सा जिसमें को-पायलट था अपेक्षतया कम क्षतिग्रस्त हुआ । बारिश की वजह से जहाज के रगड़ से पैदा चिंगारी आग में नहीं बदली और फ्यूल टैंक खाली होने की वजह से जहाज आग के गोले में तब्दील होनें से बचा रहा ।


शाम खुबसूरत थी, बेहद खुबसूरत थी ! कैप्टन साठे एक सैनिक थे और "अ सोल्जर नेवर क्विट" उनका सूत्र वाक्य था उन्होंने नियति से आखिरी वक्त तक लड़ाई लड़ी और जहाज के जीवित बचे यात्रियों और क्रू मेंबर्स की जिंदगी इसकी गवाह थी । कैप्टन दीपक साठे के जीवन की यह आखिरी शाम थी पर अपनें फर्ज अदायगी के संतोष के साथ यह उनके लिए जीवन की सबसे खूबसूरत शाम भी थी !
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कश्यप किशोर मिश्र