#आर्यों_से_भी_किसने_छीनी_संस्कृत ??

#आर्यों_से_भी_किसने_छीनी_संस्कृत ??
🔴 संस्कृत एक कमाल की भाषा है, गजब का साहित्य है इसमें। बौध्द और जैन और लोकायत के कुछ हिस्से छोड़ बकाया दर्शन भी इसी भाषा में है। गणित, अंतरिक्ष विज्ञान, भैषज शल्य और चिकित्सा की अधिकाँश शुरुआती किताबें भी संस्कृत में हैं। फिर संस्कृत इतनी लुप्तप्रायः क्यों हो गयी ?
🔴 एक वजह तो वह मूर्खता थी जिसने संस्कृत पढ़ना लिखना सिर्फ और केवल पुरुष द्विजों का उसमे भी बामनो का एकाधिकार बना दिया। अब शम्बूक की तरह हरेक तो अपना सर कटवाने का दुस्साहस नहीं कर सकता।
🔴 मगर इन द्विजों - आर्यों के बीच से भी संस्कृत क्यों गायब हो गयी? कौन हैं वे ठग जिन्होंने दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक ( जम्बूद्वीप में भी तमिल के बाद संस्कृत ही है) को "आर्यों" से ही छीन लिया।
#पढ़ें_एक_साल_पुरानी_पोस्ट ;


#भाषा_के_ऋग्वेदिक_सबक
शुरुआती ऋग्वेदिक काल मे यज्ञ के लिए न कोई पुरोहित हुआ करता था न स्थूलकाय चुटिया त्रिपुण्ड धारी प्राणी । जिसे याद हुआ उसने पढ़ लिये मन्त्र और बस हो गया ।
🔵 फिर कुछ चतुर सुजान आये । उन्होंने ऋग्वेद की यज्ञ में काम आने वाली सारी ऋचाओं को उठाकर सामवेद में और यज्ञ के नियम विधान इकट्ठा कर यजुर्वेद में रख दिये - और फिर बकाया आर्यों से कहा कि ;
¶¶ ऋचा या श्रुति पढना भर काफी नहीं, उच्चारण भी एकदम शुध्द और प्रांजल और "पूर्ण" होना चाहिए । न हलन्त की गड़बड़ी हो न अनुस्वार की गफलत । बिंदी और चंद्रबिंदु के अलग अलग वजन के साथ वाचन हों । मात्रा का सांस भर भी दोष न हो । स्वर के आरोह अवरोह में भी रत्ती भर फर्क न हो वरना ....... वरना यज्ञ उल्टी भी पड़ सकती है । पता चला कि किया था महामृत्युंजय और इधर हो गया खुद का ही तर्पण ।
¶¶ सिर्फ आहुति और तर्पण काफी नही । फलां वाचन के वक़्त बांये हाथ की तर्जनी यदि ऊर्ध्वाधर है तो दांये की कनिष्ठा पश्चिमोन्मुखी हो और दोनों पांवों के अंगुष्ठ क्रमशः उत्तर और दक्खिन की ओर मुड़े हों और 6 पहर पूर्व तांबे के लोटे के पानी से भिगोई मिट्टी में नाखून तक घुसे हों ।
🔵 यह सब सुनकर बाकी आर्यों ने जोर से चिल्लाकर कहा उड़ीबाबा और "अब का हुईए साब" के भाव मे ठोड़ी पर हाथ टिकाकर विचारवान मुद्रा में बैठ गए ।
🔵 ठीक इसी अवसर पर वे ही चतुर सुजान "हम ही ने दर्द दिया है हम ही दवा देंगे" के वृंदगान के साथ हाजिर हुए और यज्ञों, आहुतियों, बलियों, दक्षिणाओ और ग्रंथों और भाषा सब की कमान संभाल ली ।
🔵 बाकी सब कहानी बाद में कभी । अभी सार सार .... और वह यह है कि इसका सबसे बड़ा असर भाषा पर हुआ । अशुध्द उच्चारण के प्रतिघात और प्रकोप के भय और शुध्दता के याज्ञवलकीय मापदण्ड पर टंच न हो पाने के चक्कर में वे अपनी ही भाषा से वंचित हो गए । उनकी खुद की भाषा संस्कृत इने गिने 'शुध्द रक्त' पुरोहितों की पोथियों में कैद और उन्ही की जिव्हा पर विराजमान हो कर रह गई । इस कदर कि कालिदास समेत सारे साहित्य ग्रंथों में भी स्त्रियों और आमजनों से प्राकृत में ही बुलवाया जाने लगा ।


#मोरल_ऑफ_द_स्टोरी
🔵 तत्सम-कुत्सम और किताबी शुध्दता के चक्कर मे मत पड़िये । भाषा को बंद सरोवर का ठहरा हुआ पानी मत बनाइये । कलकल प्रवाहित सरल सलिला बनी रहने दीजिए । भवानी प्रसाद मिश्र की कही मानकर जिस तरह सब बोलते हैं उस तरह लिखिए और इसके बाद भी सबसे अलग दिखिये ।
🔵 अमरकंटक से निकली नर्मदा की भांति राह की सारी बोलियों, भाषाओं , उर्दू से मराठी , मालवी से गुजराती सहित सबकी सुगंधि समेटती हिंदी को हिंदुस्तानी बनाये रखिये ।
🔵 वरना अपने पुरखों की तरह आज के चतुर सुजान नवपुरोहित इसे हिंगलिश बनाकर अपना माल बेचने का जरिया बना लेंगे ।
#पुनश्च
इस पुरोहितियाना छद्म के लिए खुद आर्यों ने जो खबर ली है , जैसे उदगार व्यक्त किये है उन्हें पढ़ने के लिए न पढ़ें चार्वाक, बृहस्पति, जोतिबा, आंबेडकर या नम्बूदिरीपाद को ; ऋग्वेद और छान्दोग्योपनिषद और बृहदारण्यक उपनिषद में ही तनिक झांक लीजिये



badal saroj