अमर शहीदों का पैग़ाम, जारी रखना है संग्राम!

 



शहादत दिवस - 12 सितम्बर 1984
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★शहादत स्थल - रेलवे लाईन के पास मोतीपुर
★शहीद साथी - मेहतरू देवाँगन, घनाराम देवाँगन, जगतराम सतनामी, राधे ठेठवार
आज जब पूरे देश में मज़दूर आन्दोलन के बिखराव का फ़ायदा उठाकर पूँजीपतियों की सेवक सत्ता ने मज़दूरों पर कहर बरपा कर दिया है, तब हमारे शहीदों का लहू हमें आवाज़ दे रहा है — साथियो, अपनी नींद की खुमारी को उतार फेंको, थकान और निराशा को दूर करो और एक बार फिर से लाखों-लाख मज़दूरों को संगठित करने के लिए उठ खड़े हो। एक बार फिर याद करो अपने उस सुनहरे अतीत को जब कॉमरेड शंकर गुहा नियोगी की अगुवाई में छत्तीसगढ़ के मज़दूर जाग उठे थे और अपनी संगठित शक्ति के बल पर लुटेरों और उनकी सरकारों को मजबूर कर दिया था अपने हक-अधिकार हमें देने के लिए।
यही कारण था कि छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के मजदूर आन्दोलनों से डरी हुई पूँजीवादी सरकारों (कॉग्रेस हो या भाजपा) ने इस संगठन को कुचलने के लिए चार-चार बर्बर गोलीकाण्ड करवा डाले।


*पहला गोलीकाण्ड*
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2-3 जून 1977 को जनता पार्टी की सरकार ने दल्लीराजहरा के खदान मजदूरों पर गोली चलवाकर एक महिला और एक बालक सहित 11 मज़दूर साथियों की छाती को गोली से छलनी किया। इस गोलीकाण्ड को न्यायिक जाँच आयोग के न्यायाधीश (उच्च न्यायालय ) श्री एम. ए. रज्जाक ने अवैधानिक और बर्बर गोलीकाण्ड कहा, लेकिन इस हत्याकाण्ड के दोषी नेताओं और अफ़सरों को कभी सज़ा नहीं हुई।
*दूसरा गोलीकाण्ड*
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27 सितम्बर 1980 को सी.आई.एस.एफ.के जवान द्वारा एक नाबलिग आदिवासी बाला के साथ बलात्कार करने के प्रयास का खदान मजदूरों (महिला मजदूरों की अगुवाई में) द्वारा किए गए विरोध और अपराधी जवान की गिरफ्तारी की माँग को दबाने के लिए जो बलप्रयोग और गैरकानूनी गोलीबारी की गयी उसमें साथी आशाराम की शहादत हुई ।
*तीसरा गोलीकाण्ड*
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12 सितम्बर 1984, मोतीपुर में रेलवे लाईन के पास मज़दूर साथी मेहतरू, घनाराम देवाँगन, जगतराम सतनामी और राधे ठेठवार की शहादत। राजनाँदगाँव गोलीकाण्ड का जाँच कर रहे न्यायिक आयोग के न्यायाधीश एस. आर. पाँडे ने बर्बर गोलीकाण्ड के लिए बी. एन. सी. मिल्स (एन. टी. सी. ) प्रबँधक और राज्य शासन को दोषी ठहराया ।
*चौथा गोलीकाण्ड*
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एक जुलाई 1992 को भिलाई रेल सत्याग्रह के दौरान पुलिस फ़ायरिंग में 17 मज़दूर साथियों की शहादत । गोलीकाण्ड के जाँच के लिए जो न्यायिक जाँच आयोग का गठन किया गया था उसका निष्कर्ष आदेशित करते समय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी. सी. अग्रवाल ने सरकार की नाकामी और उद्योगपतियो की हठधर्मिता बताया । यहाँ यह लिखना लाज़मी है कि इन सभी गोलीकाण्डो की सरकारी न्यायिक जाँच की घोषणा से पूर्व पी.यु.सी.एल.स्वतंत्र जाँच समिति गठित कर सरकार और उद्योगपतियों अवैधानिक क्रियाकलाप और दमन का पर्दाफाश करती रही है ।


लुटेरे-हत्यारे पूँजीपतियों ने 28 सितम्बर 1991 को कामरेड शंकरगुहा नियोगी पर कायराना हमला करवाया जिसमें वे शहीद हो गए।


हमारे शहीदों ने अपना ख़ून बहाकर जो अधिकार हासिल किये थे, उन सबको आज छीना जा रहा है। आज फासिस्ट मोदी सरकार की अगुवाई में पूरे देश में मज़दूर वर्ग पर चौतरफा हमला बोल दिया गया है। कोरोना संकट ने इस बात को एकदम उजागर कर दिया है कि इस देश की हर चीज़ को बनाने और चलाने वाले मज़दूरों के पास वास्तव में कोई अधिकार नहीं है। उन्हें केवल मुनाफ़ा पैदा करने वाले ग़ुलाम समझा जाता है। आज हमें संकल्प लेना है कि शहीदों की अधूरी लड़ाई को हम पूरी मज़बूती और एकजुटता के साथ लड़ेंगे और इसे अंजाम तक पहुँचायेंगे।
कॉमरेड शंकर गुहा नियोगी ने यह कविता 2-3 जून 1977 को हुए दल्ली-राजहरा गोलीकाण्ड के शहीदों की याद में छत्तीसगढ़ी में लिखी थी जो हमारे आन्दोलन के सभी शहीदों को समर्पित है।


रायफल की गोली
छाती पर खाकर
विदा हो गये हमारे जो भाई
छोड़ गये हमें
इस दुनिया के शोषण
और अत्याचार के लिए
वे हमारे भाई-बन्धु
जिन्होंने कभी नहीं सहा अन्याय और
उठायी हमेशा शोषण के खिलाफ आवाज़
बलिदान की निष्ठा को
अपने रक्त की बूँद-बूँद से
रँग कर चल दिये
हमारे वे साथी, बहन अनुसुइया
मृत्यु सागर के तट पर
हो गये वे अमर
शहीद होते ही आये हैं अमर
व्यर्थ कभी नहीं जाता उनका लहू
छत्तीसगढ़ कभी नहीं भुला पायेगा
तीन तारीख़ का ख़ूनी इतिहास
किसान-मज़दूर की शक्ति होगी संगठित
बजेगा वर्ग संघर्ष का बिगुल
बदला लेंगे हम
अपने भाई-बहनों के खून का
आज तो हम
क्रान्ति की लड़ाई की तैयारी मे लगे हैं
जिस रायफल ने
हमारे भाई-बहनों की छाती को छेदा
कल वही हमारे हाथ आयेगी
और हम गिन-गिन कर
छाँट-छाँटकर
जमीन पर सुला देंगे लुटेरों को
आज तो होम करते हैं हम
अपने दस भाई और
बहन अनुसुइया को।


By - शेख अंसार Kanak Tiwari