पेरियार ने कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो के एक भाग का अपने साथी एस रामनाथन के साथ मिलकर तमिल में अनुवाद किया था. वे उन्हीं रामनाथन और दूसरे साथी रामू के साथ 13 दिसंबर 1931 को सोवियत संघ के लिए मद्रास से पानी के जहाज में रवाना हुए थे. अँगरेज़ सी आई डी ने उनकी यात्रा को गैरकानूनी घोषित किया था इसलिए जाने के प्रोग्राम को गुप्त रखा गया था. सोवियत संघ में प्रवेश की अनुमति के लिए उन्हें एथेंस में 2 सप्ताह रुकना पड़ा था. 2 फरवरी 1932 को उन्हें अनुमति प्राप्त हुई. सबसे पहले उन्होंने रेड स्क्वायर में लेनिन की समाधी पर जाकर उस महान क्रान्तिकारी को अपना सम्मान प्रकट किया. वे अपने 90 दिन के सोवियत प्रवास में लेनिनग्राद, बाकू, जॉर्जिया, तिबलिसी और अज़रबैजान भी गए. मोस्को की नास्तिक लीग ने उनकी मेज़बानी की. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है कि वे जहाँ भी गए सोवियत लोगों ने उनकी बहुत आव भगत की. वे वहां की जेल देखने भी गए जिनके बारे में स्टालिन विरोधियों ने बहुत दुष्प्रचार फैलाया हुआ था. वे इत्तेफाक से 1932 के मई दिवस पर मास्को में ही थे. स्टालिन, कलिनिन और येरोस्ला्व्सकी परेड की सलामी ले रहे थे. 3 मई को मास्को की ओल्ड बोल्शेविक सोसाइटी ने क्रेमलिन के भव्य सभागार में सभी विदेशी मेहमानों के सम्मान में रात्री भोज के साथ स्वागत समारोह रखा उसमें पेरियार और उनके साथी सादर आमंत्रित थे. सी पी आई के संस्थापक सदस्यों में से एक अबानी मुख़र्जी भी उस समारोह में उपस्थित थे. सोवियत संघ की समाजवादी व्यवस्था से वे बहुत प्रभावित हुए और वापस आकर उन्होंने स्वाभिमान आन्दोलन शुरू किया और अपने समर्थकों से कहा कि उन्हें महागनम, श्री, थीरू या थिरुपथी आदि सम्मानजनक शब्दों से नहीं बल्कि कॉमरेड कहकर संबोधित किया जाए. वे सोवियत संघ से इतने प्रभावित हुए कि उनके एक द्रविड़ दोस्त को जब बेटी हुई तो उन्होंने उसका नाम रसिया रखा और एक दुसरे दोस्त के बेटे का नाम मास्को रखा. उनका कहना था कि जब पूरा यूरोप भयानक मंदी के कारण त्राहि त्राहि कर रहा था तब सोवियत संघ में हर तरफ़ जोर शोर से विकास हो रहा था. मस्कुवा सरकोजी साकिज़ जन अदालत से वे बहुत प्रभावित हुए. उस समय की मद्रास की पुलिस रिपोर्ट बताती हैं की उन्होंने पुरे जोर शोर से कम्युनिज्म का प्रचार शुरू कर दिया. अगले तीन महीनों में उन्होंने 40 सभाएं आयोजित कीं जिनमें उन्होंने स्पष्ट घोषणाएँ की वे इस अंग्रेजी राज्य को उखाड़ फेंकना चाहते हैं और इसकी जगह सोवियत संघ जैसा समाजवादी राज्य स्थापित करना चाहते हैं. इस पर पुलिस के कान खड़े हो गए. परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए और परिस्थितियां प्रतिकूल होने के कारण उन्होंने 1935 की एक सभा में समाजवाद प्रस्थापित करने के प्रस्ताव को तात्कालिक रूप से रोकने की घोषणा की. उनका कहना था, "नई दुनिया कैसी होती है, जानना है तो मास्को जाकर देखिए." हालाँकि वे भारत की तत्कालीन कम्युनिस्ट पार्टी से बिलकुल प्रभावित नहीं थे.
द्रविड़ आन्दोलन के बुद्धिजीवी ए आर वेंकतचलपथी के द हिन्दू में छपे दिनांक 18 सितम्बर 2017 के लेख से साभार
महान समाज सुधारक पेरियार को सादर नमन