रघुवंश बाबू के जीते जी सांप्रदायिक और षड्यंत्रकारी शक्तियां उनके इर्द-गिर्द फटक नहीं सकी मगर उनके बीमार होते वैसी शक्तियां अपनी हरकतों से बाज भी नहीं आई।
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सावधान! सांप्रदायिक और षड्यंत्रकारी शक्तियों की रंगी हुई चोंच और रंगा हुआ डैना है, थोड़ा उससे बच के ही रहना होगा।
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बिहार की राजनीति में रघुवंश बाबू ईमानदारी,संघर्ष और अपने कट्टर समाजवादी मूल्यों के मिशाल थे। जब वे जीवन के अंतिम समय में फेफड़े और लीवर जैसी बीमारी की पीड़ा से तड़प रहे थे तब उनके इर्द-गिर्द दुर्भाग्य है कि अपनों को फटकने तक पर पहरा था। सबसे दुखद है कि जब वे वेंटिलेटर पर अचेतन अवस्था में थे तब उनके दुश्मनों ने ही उनको अपने कब्जे में कर लिया। ठीक ही कहा गया है कि लोभियों के गांव में ठग कभी भूखा नहीं सोता।
जिस नीतीश कुमार ने पत्नी, दोस्त और गुरु सबको निर्ममता पूर्वक मौत दी,अचानक रघुवंश के परिवार पर कृपा बरसाने की ढोंग करने लगे। खुद तो उनकी अंतिम यात्रा (अंत्येष्टि) में शामिल होने तो गए नहीं उल्टे अपने दरबार के उन्हीं विरुदावली गाने वाले दो बेसुरा अपाहिजों को भेजा जिससे वे रघुवंश बाबू को अनवरत गाली और अभद्र टिप्पणियां करवाता था। ये दोनों अंत्येष्टि स्थल पर ऐसी-ऐसी हरकतें करता रहा जिसके चलते वह दोनों भीड़ दर्शाया कई बार अपमानित भी होता रहा। कुछ लोगों ने पूछा ये कौन है तो हल्ला हुआ मोकामा का चोर। किसी ने कुछ और कहा। बड़ी मुश्किल से स्थिति संभली और दोनों वहां से वेआबरु होकर चलते बना।
रघुवंश बाबू की खासियत थी। वे आमलोगों के बीच ही पालथी मारकर बैठते थे। जीवन में कोई भेदभाव नहीं किया। आम आदमी के बीच बिना कोई दूरी बनाए रहते थे। रघुवंश बाबू के छोटे पुत्र ने मुखाग्नि दी तो गांव के लोगों ने लालू जी से रघुवंश बाबू के अभिन्न रिश्तों को देखते हुए उनके बेटे तेजस्वी यादव से भी चंदन की लकड़ी का टुकड़ा भी रखवाया और कहा इससे जरूर रघुवंश बाबू के आत्मा को शांति मिलेगी। तेजस्वी भावुक हो गए। तेजस्वी के साथ बिस्कोमान के अध्यक्ष विधायक सुनील कुमार सिंह और रघुवंश बाबू के शिष्य पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम भी थे।