31 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के असंवेदनशील फैसले से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) स्तब्ध है, जिसमें रेलवे विभाग की तरफ से कोर्ट को दी गयी जानकारी के हिसाब से 48 हजार झुग्गियों को उजाड़ने का आदेश दिया गया है। इस सिलसिले में सीपीआई(एम) की दिल्ली राज्य कमेटी की तरफ से दिल्ली के उपराज्यपाल माननीय बैजल जी को चिट्ठी लिखकर तुरंत हस्तक्षेप करने की माँग की गई है। इसके साथ ही सीपीआई(एम) की पोलित ब्यूरो सदस्य कॉमरेड बृंदा करात ने रेल मंत्री पीयूष गोयल को चिट्ठी लिखकर इस अमानवीय फैसले को रोकने एवं केंद्र सरकार से इस संदर्भ में हस्तक्षेप करने की माँग की।
'आश्रय का अधिकार' पर हमला है सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि जिन लाखों झुग्गी वासियों पर इसका सीधा असर पड़ेगा - उन्हें कोर्ट में अपना पक्ष रखने तक का भी मौका नहीं मिला। दिल्ली में प्रदूषण के मामले में सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया गया है। भारतीय रेल विभाग ने अपने हलफनामे में रेल पटरियों के किनारे बसे हजारों झुग्गियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि तीन महीने के अंदर इन अतिक्रमण को हटा दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट यहीं तक नहीं रुकी, बल्कि इससे आगे बढ़कर उसने अपने आदेश में लिखा कि किसी भी कोर्ट को इस अतिक्रमण को हटाने के आदेश पर स्टे(रोक) नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न सिर्फ प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है, बल्कि आश्रय के मूलभूत अधिकार के भी विरुद्ध है।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की अनदेखी
झुग्गियों के संदर्भ में पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में स्पष्ट रूप में कहा गया था कि झुग्गियों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए। अगर उन्हें उस स्थान से हटाना जरूरी हो तो ऐसी हालत में उनके लिए पुनर्वास की वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की अनदेखी स्पष्ट है।
राष्ट्रीय आवास सम्बन्धी नीति
विभिन्न समय पर राष्ट्रीय आवास संबंधी नीति में बहुत स्पष्टता के साथ उसी स्थान पर पुनर्वास पर जोर दिया गया है। जहाँ झुग्गी वहीं मकान। अगर वहाँ से स्थानांतरित करना बहुत जरूरी हो तब अंतिम उपाय के तौर पर वैकल्पिक व्यवस्था की बात की गई है। झुग्गियों को स्थानांतरण का विकल्प दिए बिना उन्हें उजाड़ना सैद्धांतिक रूप से भी नीतिगत ढाँचे में स्वीकार नहीं किया गया है।
मोदी सरकार की कथनी और करनी का भेद
एक तरफ मोदी ने "जहाँ झुग्गी वहीं मकान" का सपना दिखाकर लोगों से वोट लेकर सरकार बनाई, अब उसी सरकार के रेल मंत्रालय द्वारा रेल पटरियों के किनारे बसे 48 हजार झुग्गियों को उजाड़ने का षड्यंत्र किया जा रहा है। रेल मंत्रालय द्वारा दिए गए हलफनामे की मानें तो 48 हजार झुग्गियों को तीन महीने के अंदर उजाड़ दिया जाएगा। 48 हजार झुग्गियों का मतलब है 3 लाख लोग जिनमें बच्चे, महिलाएं और बूढ़े भी होंगे। इन्हें उस समय बेघर कर दिया जाएगा जब कोविड19 महामारी के फैलाव का दिल्ली में दूसरा दौर चल रहा है। लगातार गिरती हुई अर्थव्यवस्था एवं अनियोजित जबरिया लॉक-डाउन के कारण बढ़ती बेरोजगारी का सामना इन गरीब मेहनतकशों को करना पड़ रहा है। मोदी सरकार के लिए यह आपदा में अवसर की तरह है। आम जनता के लिए तो यह आपदा का समय है, लेकिन सरकार के लिए मानो अवसर मिल गया है कि वह तमाम राष्ट्रीय संपदा को चंद पूंजीपतियों के हवाले कर रही है। महामारी के नाम पर तमाम प्रतिरोध के जनतांत्रिक अधिकार को भी खत्म कर दिया गया है।
झुग्गियों को उजाड़ने के आदेश को अध्यादेश जारी कर निरस्त करे मोदी सरकार
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) की साफ समझ है कि इन लाखों मेहनतकशों के आशियाने को बिना वैकल्पिक व्यवस्था के उजाड़ना मोदी सरकार के रेल मंत्रालय की तरफ से गैरजिम्मेदाराना एवं अमानवीय होगा। मोदी सरकार से हम माँग करते हैं कि राष्ट्रीय आवास संबंधी नीति के आधार पर तुरंत अध्यादेश जारी किया जाए। झुग्गियों के पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। अगर स्थानांतरण बहुत जरूरी हो तभी वैकल्पिक पुनर्वास एवं उपयुक्त मुआबजे के बाद ही उन्हें हटाने की कार्यवाही की जाए। मोदी सरकार को यह बात समझनी होगी कि मेहनतकश जनता अपने पसंद से झुग्गियों में नहीं रहते। देश के निर्माण और विकास का आधार यही मेहनतकश जनता है जो सरकार की गलत नीतियों के कारण झुग्गियों में रहने के लिए मजबूर होता है। सरकार की गलत नीतियों की सज़ा आखिर इन गरीब मेहनतकशों को क्यों भुगतना होगा? सीपीआई(एम) की दिल्ली राज्य कमेटी आगाह करती है कि बिना वैकल्पिक व्यवस्था के जबरन उजाड़ने की किसी भी कोशिश का दिल्ली की जनता सड़कों पर उतरकर जबरदस्त विरोध करेगी। इसे किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी),
दिल्ली राज्य कमेटी