गांधी - नेहरू और पटेल





सरदार पटेल गांधी जी से मिलने के पहले तक एक अभिजात्य जीवन शैली जीने वाले व्यक्ति थे । लगभग रोज शाम को क्लब जाना, वहां की हाई कल्चर एन्जॉय करना ,ब्रिज खेलना आदि आदि।

गांधी जी ने उनकी बौद्धिक प्रतिभा , दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व व उदात्त स्वभाव को पहचाना और अपनी कोर टीम में शामिल किया। उसके बाद से पटेल ने अपनी जीवन शैली गांधीवादी कर ली।

किसान आंदोलन किस प्रकार चलाया जाए ,इस पर गांधी जी की समझ प्रचलित तरीकों से अलग थी। गांधी जी अपनी समझ व सोच को व्यवहारिक आधार पर आजमाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 1928 में बारडोली को चुना। पटेल को उन्होंने बारडोली किसान सत्याग्रह/आंदोलन की जिम्मेदारी दी। पटेल ने गांधी जी के दिशा निर्देश व रणनीति के आधार पर बारडोली सत्याग्रह चलाया। दिन प्रतिदिन पटेल गांधी जी से सलाह मशविरा व मार्ग दर्शन लेते थे। बारडोली आंदोलन पूरे देश मे चर्चित हुआ और उसके आधार पर देश भर में बहुत सी जगहों पर किसान आंदोलन हुए।

पटेल गांधी जी के सबसे विश्वसनीय व प्रिय सिपहसालारों में थे और हमेशा रहे। पटेल की संगठन क्षमता बहुत जबरदस्त थी। गांधी जी ने पटेल को कांग्रेस के संगठन का मुखिया बनाया और इस तरह से सांगठनिक रूप से कांग्रेस पटेल के कंधों पर थी और हमेशा रही भी।

गांधी जी ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी पटेल को नही बल्कि नेहरू को बनाया क्योंकि गांधी जी ये मानते थे कि देश के भविष्य निर्माण हेतु जो बड़ी सोच नेहरू के पास है वो पटेल या किसी के पास नही। पटेल भी इस बात को मानते थे और वो हमेशा नेहरू जी के सहयोगी की भूमिका में रहे। किसी भी विवाद में अंतिम बात नेहरू की ही मानी जायेगी ये बात पटेल से ज्यादा कोई नही मानता था। दोनो में असीम स्नेह और आदर था। कोई झगड़ा नही था,जो अगर किसी बात पे होता भी तो दोनो आपस मे ही लड़ झगड़ कर फिर लगे लगकर निपटा लेते। कांग्रेस के बाहर के लोग जैसे नेहरू से चिढ़ते थे वैसे ही पटेल से भी ।क्योंकि दोनों पूरे कांग्रेसी थे ।

ये जो बकवास आज सुनाई देती है कि नेहरू नही पटेल भारत के प्रधानमंत्री होते तो क्या बात होती, निरी हवाबाजी है जो बाद में सांप्रदायिकों ने फैलाई जिससे नेहरू,पटेल और गांधी को अलग अलग करके मार दिया जाए यानि अप्रासंगिक कर दिया जाए। तीनो नेताओं में एक श्रेणीबद्धता थी- गांधी सबसे बड़े नेता, नेहरू पटेल उनके दो सिपहसालार, पटेल और नेहरू में बात नेहरू की चलेगी और नेहरू पटेल से जो चाहेंगे काम लेंगे, पटेल कांग्रेस संगठन के सर्वे सर्वा और गांधी के बाद नेहरू पटेल के सर्वे सर्वा। रही बात नेहरू पटेल के झगड़ों की तो ये घर की बात , फोकटवा लोगों से क्या मतलब।

पटेल साम्प्रदायिकता के सख्त खिलाफ थे। पटेल पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप गलत है। तथ्य ये है कि मुसलमानों के एक बहुत बड़े तबके में साम्प्रदायिकता घुसी हुई थी और इसीलिए देश बंटा। आजादी और बंटवारा साथ साथ हुआ और भयंकर खून खराबा चल रहा था। ऐसी कठिन स्थितियों में साम्प्रदायिकता को काबू करने में पटेल ने मुसलमानों से भी सख्ती से बात की जिसे उनका मुस्लिम विरोध कह दिया जाता है जबकि वो प्रशासनिक सख्ती की परिधि में ही था। प्रशासन (पटेल गृह मंत्री थे) साम्प्रदायिकता से केवल सख्ती से ही निपट सकता है। भैया मुनुवा करने से दंगाई शांत नही होते बल्कि मनबढ़ हो जाते हैं चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम या कोई और।

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को वाम पंथ ने लंबे समय तक संकुचित रूप से दक्षिणपंथ -वामपंथ में बांटकर ही देखा और बस मजबूरी की प्रशंसा व अनर्गल आलोचना ही करते रहे। उन्होंने गांधी को लंबे समय तक आलोचना के केंद्र में रखा और उन्हें पूंजीपतियों का मुखौटा बताते रहे। पटेल की तो हमेशा दक्षिणपंथी और बहुत खराब नेता के तौर पर ही दिखाया जाता रहा। समाजवादी भी पटेल की हमेशा बुराई करते रहे। आजादी के बाद गुजरात कांग्रेस में भी जब खेमेबाजी बढ़ी तो नेहरूवादी -पटेल वादी गुट बन गए । तातपर्य यह है कि पूरे देश मे एक ऐसा बौद्धिक माहौल बना जिसमे गांधी नेहरू पटेल तीनो साथ साथ न समझे जाकर अलग अलग कर दिए गए। इसका फायदा साम्प्रदायिक तत्वों ने उठाया और पटेल को अपने पाले में लाने की कोशिश करने लगे जबकि स्वयं पटेल साम्प्रदायिकता से नफरत करते थे और हिन्दू मुस्लिम एकता के एक स्तम्भ थे।

अंत मे, पटेल पर सबसे प्रामाणिक जीवनी राजमोहन गांधी जी की है और पटेल पर सबसे बेहतरीन प्रामाणिक अध्धयन में से एक अध्धयन नीरजा सिंह का है। अगर पटेल में किसी को दिलचस्पी हो तो ये दो किताबें जरूर पढ़नी चाहिए।

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Alok Bajpai