हर जोर जुल्म की टक्कर में.....
इस विशाल लोकतंत्र ने ऐसा नज़ारा पहले नहीं देखा। किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर है और सरकार उसे रोकने को खाइयाँ खुदवा रही है। क्रेन से बड़े पत्थरों से सड़क को पटवा रही है और देर रात रिकार्ड तोड़ ठंड में उन पर पानी की बौछार करवा रही है। अन्ना आंदोलन के समय रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोग जुटे थे लेकिन तब की कांग्रेस सरकार भी इस नीचता पर नहीं उतरी थी। हमारा संविधान हमें विरोध की इजाजत देता है लेकिन ये फांसीवादी सरकार उसे बस कागज का टुकड़ा मानती है और हमारे फैशनेबल पीएम मिस्टर मोदी उसका मौखिक गुणगान करते हैं।
उधर मेधा पाटकर और योगेंद्र यादव को हिरासत में ले लिया जाता है। दिल्ली के सात स्टेडियम्स को अस्थायी जेल बनाने की तैयारी है। सारा देश देख रहा है। इस हिटलरी सरकार का अंजाम भी हिटलर की तरह ही होगा।
जब किसानों के खिलाफ काले कानून पास किए गए थे तब यह ग़ज़ल कही थी आज इसे किसानों के समर्थन में यहां लगा रहा हूँ।
करे कोई कैसे किसानी ख़ुदाया,
फ़सल माँगती खाद पानी ख़ुदाया।
नया कंपनी राज सरकार लाई,
करेगी वही अब किसानी ख़ुदाया।
हुई ज़िंदगी फिर किसानों की माटी,
बची बस बिजूका निशानी ख़ुदाया।
तिरे पास जालिम नये पैंतरे हैं,
ज़मीं हो गई है पुरानी ख़ुदाया।
अगर रहनुमाई करेंगे जो पत्थर,
पड़ेगी तुम्हें चोट खानी ख़ुदाया।
उसी ने किए हैं मियाँ खेत चौपट,
नहीं मुश्किलें आस्मानी ख़ुदाया।
उठो और मिल कर ये सूरत बदल दो,
लिखो ख़ून से फिर कहानी ख़ुदाया।
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नरेंद्र कुमार मौर्य