शहर जाने के लिए
गांव छोड़ा था मैंने
अब गांव लौटने के लिए
शहर छोड़ना चाहता हूँ मैं ।
थक गया हूँ
इस धोखे की दुनिया से
भागमभाग नहीं
पल सुकूँ का थोड़ा चाहता हूं मैं।
माना कभी हठ थी मेरी
लेकिन ऐ शहर
अब रुकने की ज़िद न कर
यहाँ से भाग जाना चाहता हूँ मैं ।
मंज़िलों वाले चकाचौंध
ऊंचाइयों को छूने की कोशिश
सूनी दीवारों को चुना था मैंने
उस मकान को बेचना चाहता हूं मैं।
पुरखों की माटी और
आंगन में पालथी मार
दो वक्त की रोटी
अपनों के साथ तोड़ना चाहता हूं मैं।
कुछ ज़्यादा की तलाश में
गरीबी को छोड़ा था मैंने
एक बार अमीरी को
फिर से जीना चाहता हूं मैं ।
गांव की ज़मीन पर
हौसलों को ऊँची उड़ान
सपनों को संवारने का मौका
एक मालिक बनना चाहता हूं मैं।
©एंजेला एनिमा तिर्की
2 दिसंबर 2020