देश में आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने वाली कंपनियों के अलावा दर्जनों दूसरी कंपनियां शहद बेचती हैं। शहद कारखाने में तो बन नहीं सकता इसलिए वह गांव-जंगल में बसे हुए असंगठित लोगों से होकर इन कंपनियों तक पहुंचता है या मधुमक्खी पालकों के माध्यम से आता है। देश की सबसे बड़ी पर्यावरण-संस्था सीएसई ने अभी एक बड़ी वैज्ञानिक-पड़ताल की तो पता लगा कि देश के अधिकतर ब्रांड अपने शहद में एक ऐसा चीनी प्रोडक्ट मिला रहे हैं जो कि भारत में शहद की जांच को धोखा देता है। चीन से आए हुए इस घोल को शहद में मिलाकर उसकी जांच की जाए तो वह उसे खालिस शहद ही बताता है। नतीजा यह हुआ है कि देश के मधुमक्खी पालक लोग इस धंधे को छोडऩे की कगार पर हैं क्योंकि उनके तैयार किए हुए शहद से आधे से भी कम दाम पर यह चीनी सिरप आ रहा है, और खबर ऐसी भी है कि चीन की कंपनियों ने यह सिरप तैयार करने के कारखाने भारत में भी बनाए हैं। ऐसा सिरप गैरकानूनी नहीं है क्योंकि पिपरमेंट बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है, लेकिन इसने हिन्दुस्तान के शहद-उत्पादन और बिक्री को पूरी तरह मिलावटी बनाकर छोड़ा है।
सेंटर फॉर साईंस एंड एनवायरामेंट की यह जांच बताती है कि जैसे-जैसे इस सिरप का इस्तेमाल भारत के शहद कारोबार में बढ़ते गया, मधुमक्खी पालकों को उनके शहद का मिलने वाला बाजार भाव गिरते चले गया। अब हिन्दुस्तान में आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, या घरेलू नुस्खों में शहद के फायदे ही फायदे गिनाए गए हैं। लोग तरह-तरह से इसका इस्तेमाल करते हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि 2018 में भारत सरकार ने शहद में मिलावट की जांच के कुछ पैमानों को रहस्यमय तरीकों से कमजोर कर दिया जिससे मिलावटी शहद की शिनाख्त मुश्किल हो गई। अब भारत सरकार के फैसलों को कोई गांव के शहद उत्पादक तो बदलवा नहीं सकते, इसलिए ऐसी रहस्यमय रियायत के पीछे देश की बड़ी कंपनियां ही रही होंगी। जो देश हजारों बरस पहले के आयुर्वेद का गौरवगान करते हुए थकता नहीं है, वह आयुर्वेद में व्यापक इस्तेमाल होने वाले इस सामान में मिलावट का रास्ता भारत सरकार के स्तर पर खोलता है तो इसे क्या समझा जाए? ऐसे में तब हैरानी नहीं होनी चाहिए जब पश्चिम के कई विकसित देश भारत की आयुर्वेदिक दवाईयों को जोखिम के पैमाने पर ऊपर पाकर उन पर रोक लगाते हैं। एक तरफ जहां दुनिया खानपान की चीजों की जांच के पैमाने कड़े बनाती चल रही है, वहीं पर भारत सरकार ने 2018 में यह जानते हुए अपने पैमानों को लचर और कमजोर बनाया कि चीन से आयात होने वाले ऐसे सिरप का इस्तेमाल लोग शहद बनाने में कर रहे हैं क्योंकि इससे लागत घट जाती है, और ये सिरप कारखानों से आसानी से हासिल है।
आज सवाल यह है कि सीमित साधन-सुविधाओं वाला एक पर्यावरण-संगठन जिस बात की जांच करके इस मिलावट का भांडाफोड़ कर रहा है, वह काम भारत सरकार अपनी जांच एजेंसियों, निगरानी एजेंसियों के रहते हुए भी नहीं कर पा रही, या शायद यह कहना अधिक सही होगा कि नहीं कर रही। जिस चीन के साथ भारत सरकार सरहद पर जीत और हार के बीच डांवाडोल चल रही है, उसी चीन से खुलेआम भारत में आने वाले ऐसे सिरप से हिन्दुस्तान के दसियों लाख मधुमक्खी पालकों के बेरोजगार होने की नौबत आ गई है। चीन के सामानों के बहिष्कार को एक नारे की तरह इस्तेमाल करके भारत के राजनीतिक दल भी कल सार्वजनिक हुए इस भांडाफोड़ पर अब तक चुप हैं। हिन्दुस्तान के मिलावटखोर कारोबारी धड़ल्ले से चीनी उत्पाद बुला रहे हैं, और वह कानूनी रास्ते से आकर गैरकानूनी मिलावट में 50 से 80 फीसदी तक मिलाया जा रहा है, और सरकार की जांच में वह खालिस शहद साबित हो रहा है।
आज दुनिया के देशों में कोई कारोबार उसी हालत में चल सकते हैं जबकि वे देश-विदेश की ऐसी साजिश के शिकार न हों। आज देश का कोई ईमानदार शहद उत्पादक ब्रांड क्या खाकर मिलावटी शहद का मुकाबला कर सकता है, अगर मिलावटी शहद को शुद्ध होने का सरकारी सर्टिफिकेट आसानी से हासिल हो सकता है। सरकार की निगरानी एजेंसियां अगर ऐसे व्यापक और संगठित कारोबार को रोकने का काम नहीं कर सकतीं, तो ऐसी विदेशी मिलावट किसी भी देसी कारोबार को सडक़ पर ला सकती है। एक तरफ तो चीन के बने हुए सामानों के खिलाफ राष्ट्रवादी फतवे दीवाली की झालरों की बिक्री बंद करवा देते हैं, दूसरी तरफ चीन के ऐसे विवादास्पद सामान हिन्दुस्तान के एक सबसे पुराने और परंपरागत दवा-सामान को कानूनी धंधे से बाहर ही कर दे रहे हैं।
यह पूरा सिलसिला एक निराशा पैदा करता है क्योंकि यह देश में कुटीर उद्योगों को खत्म करने का मामला तो है ही, यह देश में आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा की साख को खत्म करने का मामला भी है। आज देश भर में कहीं खादी ग्रामोद्योग के तहत, तो कहीं प्रदेश शासन के वनविभाग के मातहत वनवासियों के लिए शुरू किए गए मधुमक्खी पालन की अर्थव्यवस्था को ऐसी मिलावट खत्म कर रही है। जब शहद उत्पादकों को कुछ बरस पहले के दाम से आधा दाम भी आज नहीं मिल रहा है, तो जाहिर है कि उनकी रोजी-रोटी चीनी कंपनियों के मिलावट के कच्चे माल की शक्ल में आ रहे हैं, और हिन्दुस्तानी मधुमक्खियों को भी बेरोजगार कर रहे हैं।
सीएसई ने एक वैज्ञानिक-पड़ताल की रिपोर्ट सार्वजनिक की है, और जाहिर है कि वह भारत सरकार की नजरों में तो आ ही चुकी है। भारत में लोगों को रोजगार देने का जो सरकारी दावा है, उस दावे को कुचल-कुचलकर मारने का काम यह मिलावटी-कारोबार कर रहा है। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। आज सरकार के पास तमाम सुबूतों के साथ यह मामला तश्तरी पर पेश किया गया है। इस पर भी अगर कार्रवाई नहीं होती तो देश के लोग शहद के फायदों की बात को आयुर्वेद का इतिहास मानकर उसका चिकित्सकीय उपयोग भी बंद कर देंगे। केन्द्र सरकार न सिर्फ जांच करे, बल्कि मिलावट करने वालों को तेजी से जेल भेजे, कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे, और चाहे जितनी बड़ी कंपनी हो, ऐसी कंपनियों को बंद करवाने की कानूनी पहल करे। अगर यह सरकार ऐसा नहीं करती है, तो फिर यह बात साफ रहेगी कि 2018 में मिलावट पकडऩे वाले जांच के कड़े पैमाने क्यों ढीले किए गए थे।
Sunil Kumar