कोरोना काल में बच्चे !
कोरोना काल में हमारे बच्चों का जीवन सबसे कठिन हुआ है। उनका बचपन उनसे छिन गया है। महीनों से वे घर के बाहर नहीं निकल पा रहे। अपने हमउम्र दोस्त उनके लिए अछूत हो चले हैं। खेलते-कूदते बच्चों के शोर के बगैर शहरों की गलियां सूनी पड़ी हैं। स्कूल महीनों से बंद हैं। नए साल में स्कूलों को फिर से खोलने की चर्चा तो हो रही है, लेकिन ऐसी संभावना फ़िलहाल दिखती नहीं। सरकार ने मास्क, सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग की शर्तों के साथ बच्चों के स्कूल खोल भी दिए तो देश में वैक्सीनशन की प्रक्रिया पूरी होने तक मां-बाप अपने बच्चों को शायद ही स्कूल भेजना चाहेंगे। बच्चों को मास्क पहनाकर उन्हें एक दूसरे से दो गज की दूरी पर खड़े रखना क्या इतना सहज है ? टीचर के क्लास से बाहर निकलते या छुट्टी की घंटी बजते ही वे मास्क नोचकर फेंक देंगे। स्कूल के खेल के मैदान बंद हुए तो वे क्लास को ही खेल का मैदान बना डालेंगे। ऑनलाइन क्लासेज स्कूली शिक्षा के विकल्प नहीं हो सकते। बच्चों को किताबी शिक्षा के साथ शिक्षकों की फटकार भी चाहिए, दोस्तों के साथ प्यार और लड़ाई-झगड़े भी, खेल के मैदान भी और गलियों की धूल-मिट्टी भी। फिर से वैसी परिस्थितियां लौटने में अभी बरसों लग सकते है।
डर यह है कि देश के कोरोना-मुक्त होने तक अपने सामान्य जीवन से कटे हमारे बच्चे कहीं अकेले, अवसादग्रस्त और असामाजिक न हो चुके हों।
dhruv gupt