सरकार का इरादा शुरू से नेक होता तो तालाबंदी का लाभ उठा कर अध्यादेश के ज़रिए क़ानून नहीं लाती

किसान आंदोलन के केंद्र में तीन क़ानून हैं। इनमें से एक है कांट्रेक्ट फ़ार्मिंग का क़ानून। इसके प्रावधानों को ठीक से समझने की ज़रूरत है। विवाद होने पर न्याय की व्यवस्था अदालत से अलग कर दी गई है। किसान को एस डी एम के कोर्ट में जाना होगा। अब डी एम और एस डी एम कोरपोरेट के दबाव में काम नहीं करेंगे इसे लेकर समय बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं हो। दो कंपनियाँ तो ऐसी हो गई हैं कि वे ख़ुद को देश का मालिक समझती हैं और सबसे पहले ये अफ़सर उनके गुलाम। इसलिए क़ानून में जो लिखा है उसे ध्यान् से पढ़िए।





सरकार का इरादा शुरू से नेक होता तो तालाबंदी का लाभ उठा कर अध्यादेश के ज़रिए क़ानून नहीं लाती। पाँच जून को जब अध्यादेश आया तब किसी को भनक नहीं थी। किसानों तक बात पहुँचने में काफ़ी वक्त लग गया। जुलाई के अंत से जब प्रदर्शन होने लगे तब से लेकर 30 सितंबर तक राज्य सभा में विधेयक के पास होने तक सरकार ने एक बार भी किसानों से बात नहीं की। जो सरकार ख़ुद गुप-चुप तरीक़े से काम कर रही थी वो ये कहे कि किसानों को भ्रम है, ठीक नहीं है।